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'पउम चरियं' में महावीर - चरित्र और उपदेश
श्री अगरचंद नाहटा बीकानेर
भगवान् महावीर जीवनी संबधी प्राचीनतम साधन श्वेताम्बर जैनागम हैं। स्वतंत्र रूप से महावीर चरित्र बहुत बाद में लिखे गये । जैन आगमों में भी प्राचारांग, कल्पसूत्र और आवश्यक नियुक्ति चूरिंग में कुछ व्यवस्थित महावीर चरित्र मिलता है, अन्य आगमों में तो छुही छवाई बातें ही मिलती है, जिन से महावीर जीवन का पूरा चित्र ठीक से उपस्थित नहीं होता ।
जैन साहित्य में कथा संग्रह सम्बन्धी पहला ग्रंथ छठा अगसूत्र ज्ञाताधर्मकथा 'ग है उसके बाद प्रथमानुयोग गंडिका प्रादि जो ग्रंथ लिखे गये थे, वे आज प्राप्त नहीं हैं । जैन कथा का सबसे पहला और महत्वपूर्ण ग्रंथ है, विमलसूरि रचित 'पउम चरियं' जिसकी रचना वीर निर्वाण सं० 530 विक्रम संवत् 60 अर्थात् प्रथम शताब्दी में हुई थी । इस ग्रंथ में प्रधानतया जैन धर्म मान्य राम कथा है । पुरुषोत्तम श्रीराम को प्राचीन जैन ग्रंथों में 'पउम' या पद्म नाम से संबोधित किया है । समवायांग सूत्र में राम का नाम 'पउम' ही पाया जाता है, जो पवें बलदेव थे । इस आगम में 5वें बलदेव का नाम 'राम' है जो श्रीकृष्ण के भाई बलराम नाम से प्रसिद्ध हैं ।
'पउम चरियं' में राम कथा के साथ-साथ श्रौर भी तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि का चरित्र वरिणत है । इसमें सबसे पहले ग्रंथ का विषय वर्णन करने के बाद मगध देश के राजपुर ( राजगृही ) में राजा
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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श्ररिक राज्य करता था, इसका उल्लेख करके भगवान् महावीर का चरित्र दिया है । वह बहुत संक्षिप्त में होने पर भी बहुत महत्वपूर्ण है । जैन आगमों के लिपिबद्ध किये जाने के ४५० वर्ष पहले के रचित इस ग्रंथ का महावीर चरित्र श्रवश्य ही उल्लेखनीय है, अतः उसे इस लेख में प्रकाशित किया जा रहा है ।
महावीर चरित्र के बाद 'पउम चरियं' में यह लिखा गया है कि "शिष्य समुदाय गणधर एवं सकल संघ के साथ विहार करते हुए तथा ज्ञानादि अतिशयों की विभूति से संयुक्त महावीर एक बार विपुलाचल के ऊपर पधारे । इन्द्र वहां आया और जिनवरेन्द्र को देखते ही दोनों हाथ मस्तक पर जोड़ कर मन में आनंदित होता हुआ भगवान् की स्तुति करने लगा ।" ४ गाथाओं में इंद्र की की हुई जो स्तुति दी गई है उसका हिन्दी अनुवाद भी इस लेख में दिया जा रहा है ।
" स्तुति के बाद" देवेंद्र और अन्य देव, योग्य स्थानों में बैठ गये । मगधादित्य श्रेणिक राजपुर से निकला, भगवान् जहां ठहरे हुए थे वहां आकर हाथी से उतर कर जिनवर की स्तुति कर नीचे बैठा । यह लिखने के बाद समोसरण का वर्णन दिया है जो प्रसिद्ध होने से यहां नहीं दिया जा - रहा है। उसके बाद लिखा है कि "मेघ के समान ध्वनि वाले जिनवरेंद्र महावीर अर्धमागधी भाषा में सभी लोगों को कल्याणकारी धर्म का उपदेश
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