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सम
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परिताप देना चाहता है वह तू ही है ।" अहिंसा का सभी महापुरुषों ने समभाव में धर्म कहा है । पूर्ण विवरण और विस्तार उनके निम्न वाक्यों में भागवत तो यहां तक कहती है–समत्व ही भगवान् मिलता है :--
की सच्ची पाराधना है--- __ "हम ऐसा कहते हैं-ऐसा बताते हैं, ऐसा निरूपण
समत्वमाराधनमच्युतस्य । करते हैं । ऐसी प्रज्ञापना करते हैं
कहते हैं कि समभाव उसको कह सकते हैं 'किसी भी प्राणी, किसी भी भूत, किसी भी जीव जो अपने को हर किसी भय से मुक्त रखता है। और किसी भी सत्व को न मारना चाहिये, न उन
समग्र विश्व को जो समभाव से देखता है वह पर अनुचित शासन करना चाहिये, न उन को गुलामों की तरह पराधीन बनाना चाहिये, न उन्हें परिताप न किसी का प्रिय करता है और न किसी का अप्रिय देना चाहिये और न उनके प्रति किसी प्रकार का
। यर्थात् समदर्शी अपने-पराये की भेदबुद्धि से परे उपद्रव करना चाहिये।
होता है। उक्त अहिंसा धर्म में किसी प्रकार का दोष अहिंसा के विरोधियों को निरुत्तर करने के नहीं है यह ध्यान में रखना चाहिये ।"
लिये भगवान् महावीर का यह तर्क बड़ा कारगर
होगाआत्मा के स्वरूप के संबंध में सनातन और जैन धर्म में अद्भुत एकरूपता है । आचारांगसूत्र "सर्वप्रथम विभिन्न मत मतान्तरों के प्रतिपाद्य कहता है--
सिद्धांतों को जानना चाहिये और फिर हिंसा के "अात्मा के बंधन में सबके सब निवृत्त हो जाते
प्रतिपादक मतवादियों से पूछना चाहिये किहैं, समान हो जाते हैं। वहां तर्क की गति ही नहीं दे प्रवादियो ! तुम्हें सूख प्रिय लगता है या दुःख । है और न बुद्धि ही उसे ठीक से ग्रहण कर पाती
हमें दुःख अप्रिय है सुख नहीं यह सम्यक् स्वीकार उपनिषद भी कहता है-वहां न वाणी जा
कर लेने पर उन्हें स्पष्ट कहना चाहिए कि तुम्हारे
ही विश्व के समस्त प्राणी जीव, भूत और सत्वों को सकती है न मन जा सकता है।
दुःख अशान्ति व्याकुलता देने वाला है, महाभय का यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह । कारण है और दुःख रूप है। तुलसीदासजी इसी वाक्य को दुहराते है । तीर्थंकरों की वाणी है कि पर सुख से हम मन समेत जिहि जान न वारणी ।
प्रकाश से प्रकाश की ओर जाते हैं और पर पीड़ा में
लगे हुए जीव अन्धकार से अन्धकार की ओर जाते तरकिहि न सकहिं सकल अनुमानी ।।
हैं । ज्ञानी होने का लक्षण क्या है ? ज्ञानी होने का इसी कारण सभी महापुरुषों ने समत्व बुद्धि सार यही है कि किसी भी प्राणी की हिंसा न की को महत्व दिया है।
जाय । अहिंसा मूलक समत्व ही धर्म का सार है।
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"सामाजिक संस्थाए ही समाज का दपर्ण है"
___ महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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