________________
हिन्दी वाङ्मय में तीर्थंकर महावीर
डा० लक्ष्मीनारायण दुबे सागर विश्वविद्यालय, सागर, [म० प्र०]
वीरगाथा काल में तीर्थङ्कर महावीर
ढाल' आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं । सत्रहवीं हिन्दी साहित्य के वीर गाथाकाल ( सम्वत् शताब्दी की एक महत्वपूर्ण कृति 'महावीर विवाह१०५०-सम्बत् १३७५) में अनेक रासो काव्य लिखे ला' या 'महावीर धवल' है। इसी शताब्दी के दो गये। तीर्थकर महावीर पर सर्वप्रथम रास सम्वत् राजस्थानी कवियों लाल विजय और देवीदास ने १३०७ में उपाध्याय अभय तिलक ने 'महावीर
महावीर पर विशाल स्तवन-काव्य लिखे थे। समय रास' के नाम से लिखा । इसका प्रकाशन
सुन्दर का 'वीर स्तवन' काव्य प्रकाशित हो 'जैन गुर्जर' ग्रन्थ में हो चुका है। यह ऐतिहासिक चुका है । महत्व का छोटा किन्तु सुन्दर काव्य है। सन् १२०० के लगभग आसगु कवि ने जालौर में पैंतीस छंदों
जयपुर में विशाल जैन-साहित्य के लेखन की तथा करुण रस से परिप्लावित एक लघु खण्ड काव्य
सुदीर्घ तथा सुपुष्ट परम्परा रही है। बुधजन ने 'चंदन बाला रास' की रचना की थी जिसमें महावीर
'वर्द्धमान पुराण' का अनुवाद किया। खुशालचंद का भी चरित्र परिगणित है।
काला ने 'उत्तर पुराण' का पद्यानुवाद किया जिसमें
अन्य तीर्थङ्करों के साथ अंतिम तीर्थङ्कर महावीर वीरगाथा काल के समस्त वाङमय का संबंध का जीवन-चरित्र भी वर्णित है । राजस्थान से रहा है। राजस्थानी भाषा में तेरहवीं शताब्दी से ही महावीर स्वामी पर रचनाएं मिलने
राजस्थान की कवयित्रियों में जैन कवयित्री लगती हैं परन्तु उनमें से अनेक अपभ्रंश से विशेष सती जड़ावजी ( सम्वत् १८६८-१९७२ ) का रूप से प्रभावित हैं। इस प्रकार की महावीर महत्वपूर्ण स्थान रहा है । उनके काव्य 'चौबीसी' में बोलिका, महावीर स्रोत, कलश, जन्माभिषेक आदि नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी को ही की अधिकांश रचनाएं तेरहवीं तथा चौदहवीं शताब्दी विशेष रूप से अपना गेय विषय बनाया गया है । में मिलती हैं।
राजस्थान के लोक सपना-साहित्य में रानी पन्द्रहवीं शताब्दी से महावीर सम्बन्धी अनेक त्रिशला के चौदह स्वप्नों की चर्चा आयी है। एक स्तवन-स्तोत्र आदि राजस्थानी में मिलने लगते हैं। अन्य सपना गीत में ऋषभदेव जी के केसर, नेमिनाथ श्रावण लखमण का 'महावीर चरित्र चौपाई,' जी के फूल, पार्श्वनाथ जी के केवड़ा, महावीर स्वामी समरचंद का 'महावीर स्तवन', सकलचन्द्र उपाध्याय के नारियल, गौतम स्वामी के सुपारी, शांतिनाथ के के 'वीर वर्द्धमान जिनबेलि,' 'महावीर हींच' तथा खार में चढ़ाकर उनकी उपासना करने की बात 'वीरजिन-स्तवन, हंसराज का 'पंच कल्याण स्तवन- अत्यन्त सुन्दर रूप में कही गयी है।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
2-25
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org