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में आपका मन नहीं लगता था। आप घर में रहते महावीर अत्यन्त संयमी, कष्टसहिष्णु तथा हुये भी भोगों से विरक्त थे। अन्त में ३० वर्ष की गम्भीर विचारक थे। अापने अहिंसा का सूक्ष्म
आयु में गृह त्यागकर वन में तपस्या और प्रात्म- विश्लेषण किया। आपने कहा कि मारना सताना चिन्तन में लवलीन हो गये।
और दुःख देना तो हिंसा है ही ऐसा करने की
'प्रेरणा, अनुमोदन तथा विचार भी हिंसा हैं । आवश्यकता होने पर आप दिन में एक बार मुनि तो हिंसा के मन-वचन-काय से पूर्णत्यागी आस-पास की बस्ती में आकर शुद्ध निर्दोष आहार होते ही हैं, गृहस्थ को भी किसी जीव की हिंसा ले लेते तथा पुनः वन में जाकर ग्रात्मध्यान में लग का इरादा नहीं करना चाहिये। यह महापाप है। जाते। इस बीच आपने सांसारिक दुःख तथा धीवर घर से यह विचार करके चलता है कि उनसे छूटने के उपाय, अात्मशक्ति तथा बन्धन- आज तालाब से बहुत सी मछलियां मारकर मुक्ति आदि विषयों पर अत्यन्त शांति और लाऊंगा । भले ही उसके जाल में एक भी मछली गम्भीरता से मनन और चिन्तन किया । महावीर न फंसे फिर भी वह भारी हिंसा और पाप का ने ईसा से ५५७ वर्ष पूर्व ४२ वर्ष की आयु में काम भागी है । क्रोध, राग-द्वेष मोहादि को पूर्णतया जीतकर पूर्णज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त किया। अपनी आत्मा हिंसक जानवरों के विषय में आपने बताया से कर्मशत्र का नाश करने के कारण 'अरिहन्त' कि सांप, बिच्छू, शेर आदि को भी नहीं मारना
और दूसरे शब्दों में कर्मों पर विजय प्राप्त करने चाहिये । वे तो बेचारे नासमझ है, मानव जैसे के कारण 'जिन' कहलाये। आपने अपने उपदेश समझदार तो नहीं। हमें पापी के पाप से घृणा में उन्हीं सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला जिनको उनके करना चाहिये उसके जीवन से नहीं। महावीर पूर्ववर्ती २३ तीर्यङ्कर अपने-अपने समय में बतला स्वामी ने बताया कि हिंसा और जीववध चाहे चुके थे।
धर्म, बलिदान, भेंट, यज्ञ, शिकार या भोजन किसी
भी काम के लिये क्यों न किया जाय, पाप है और उनका सबसे बड़ा उपदेश था कि सब जीव अन्याय है । इसी का यह परिणाम था कि यज्ञों (प्रात्मायें) समान है। वे अपने-अपने पुण्य पाप के में मारे जाने वाले लाखों पशुओं के प्राण बच गये। कारण भिन्न-भिन्न योनियों में भ्रमते तथा सांसारिक वेदों के महान विद्वान् लोकमान्य बाल गंगाधर सुख-दुःख उठाते हैं पर वास्तव में उनमें कोई तिलक ने यह माना है कि यज्ञों से हिंसा दूर करने अन्तर नहीं। उन सब में समान शक्ति है तथा का श्रेय महावीर की अहिंसा को है। धीरे-धीरे आत्म विकास. कर अन्त में सभी सांसारिक बन्धनों को काटकर पूर्ण स्वतन्त्रता महावीर के द्वारा हिंसा के विरुद्ध ऐसा वाता(मोक्ष) प्राप्त कर सकते हैं । ३० वर्ष तक अहिंसा वरण बना जिससे देश में मांसाहार के प्रति आदर अपरिग्रह, अनेकान्त, कर्म सिद्धान्त आदि सर्व-प्राणि भाव नहीं पाया जाता। यद्यपि आज करोड़ों समानता के सुनिश्चित और उपयोगी सिद्धान्तों का व्यक्ति मांसाहार करते हैं पर वे स्वयं जानते हैं प्रतिपादन कर अन्त में ७२ वर्ष की आयु में ईसा कि वे जो कुछ कर रहे हैं वह निन्द्य हैं, नैतिक से ५२७ वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रातः अपराध है । यह महावीर का अनुपम प्रभाव है। काल शरीर का त्यागकर निर्वाण प्राप्त किया। उनका स्वभाव पिता जैसा था । वे दृढ़ सिद्धांतवादी
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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