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अपरिग्रह अाज के युग में बहुत आवश्यक है परन्तु सभाओं में व्याख्यान सुनते हैं, भगवान् महावीर की दुर्भाग्य से आज मानव बिल्कुल इसके विपरीत चल प्रति वर्ष जयन्ती मनाते हैं और विशाल जुलूस रहा है। वस्तुओं को जुटाने की होड़ लगी हुई है, निकालते हैं लेकिन उस महान आत्मा के विचारों देखा-देखी ने घर के बजट को अस्त-व्यस्त कर को हृदय से नहीं अपनाते । क्या यह केवल ढोंग रखा है । आज मनुष्य ईर्ष्या व घृणा से पीड़ित और पाखण्ड नहीं है ? क्या यह केवल लकीर है, झूठी शान के लिये अपनी हैसियत से ज्यादा पीटना नहीं है ? । खर्च करता है और फिर उस खर्च को पूरा करने के लिए मारा-मारी करता है। अगर स्वयं के घर
आज दुनियां विकास और विनाश के कगार में सोफा-सेट या स्कूटर नहीं है तो वह हीन भावना ।
पर खड़ी है। मनुष्य ने एटम बम, हाइड्रोजन बम से ग्रस्त हो जाता है। इसके लिये दूसरे लोग भी
अन्तर्महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र व मिसाइलों से युक्त जिम्मेदार होते हैं जो उसे रात-दिन ताने कसते पन
- पनडुब्बियों का निर्माण कर लिया है । ऐसा लगता रहते हैं। अमरीकी समाज आज हर प्रकार के
न है मनुष्य ने अपने विनाश के सभी सामान जुटा भातिक साधन जुटा चुका है परन्तु फिर भी मन लिये हैं और परस्पर तनावपूर्ण वातावरण में जी की शांति के लिये भटक रहा है । हिप्पीवाद उसका
रहा है। आज की परिस्थितियों में भगवान् एक नमूना है। आज समाज में व्याप्त अनेक
महावीर का 'जीवो और जीने दो' तथा 'अहिंसा बुराइयों का यह एक प्रमुख कारण है। समाज में परम धर्म है' का सन्देश अधिक सार्थक है । सहव्यक्ति की प्रतिष्ठा आज उसकी संचय शक्ति से
अस्तित्व व सहिष्णुता के विचार के बिना आज प्रांकी जाती है इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति का एक ही
. जीना दूभर है। निशस्त्रीकरण की दिशा में लक्ष्य है कि वह अधिक से अधिक भौतिक साधन
उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है। महाशक्तियों के जुटाये और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करे । इसके
बीच आज भी तनाव बना हुआ है जो कभी भी लिये वह जायज-नाजायज दोनों तरीकों से अपने
मनुष्य को विनाश के गर्त में ले जा सकता है । लक्ष्य की प्राप्ति करता है, चाहे उसे मिलावट
प्रसन्नता इस बात की है कि इतिहास में पहली बार करनी पड़े या कम तोलना पड़े या झूठ बोलना
. भगवान् महावीर के उपदेशों का प्रचार विश्व में पड़े । खाद्य पदार्थों और दवाइयों में मिलावट तो
करने हेतु कई लोग विदेश गये हैं जिनमें मुनिश्री मनुष्य की जान भी ले लेती है। और तो और ।
ही सुशीलकुमारजी एवं उनके सहयोगी मुख्य भगवान महावीर के अनुयायी भी इसे हिंसा नहीं है
ही हैं। आशा है यह प्रयास भगवान् महावीर के मानते ।...... ....आज कथनी और करनी।
उपदेशों को विश्व-व्यापी बनाने में सफल होगा और में कितना अन्तर है ? हम मन्दिर जाते हैं, धार्मिक विश्वशांति स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगा।
महावीर ने कहा
पासम्मि वहिणिमायं सिसुपि हणेइ कोहंधो । क्रोध में अन्धा मानव मां, बहन और बच्चे को भी मार डालता है।
जीवदया अप्पणो दया होइ । पर जीवों पर दया करना अपने पर ही दया करना है।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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