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लेखक आधुनिक राजनीति शास्त्र के विद्वान हैं किन्तु शायद वर्तमान राजनीति में युद्ध की विभीषिका से संत्रस्त मावन जाति के निस्तार का कोई उपाय उपलब्ध नहीं हुआ। वे सही ही इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इस कष्टप्रद स्थिति से छुटकारा दिलाने में भगवान् महावीर के सिद्धान्तों का अनुगमन ही एक मात्र समर्थ उपाय है न कि छल, कपट, फरेब, भय और हिंसा पर आधारित वर्तमान राजनीतिक दांव-पेच ।
प्र० सम्पादक
भगवान महावीर और उनका सन्देश
• प्रो० सिताबचन्द्र सोगानी, अध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग, अग्रवाल कालेज,
जयपुर सदियों में कोई एक महापुरुष पैदा होता है और इसलिए जीवन भर वे अहिंसा के पुजारी बने जो भटके हुये संसार को सन्मार्ग दिखलाता है। रहे । भारत अहिंसा के रास्ते से ही स्वाधीन बना। ऐसे ही थे भगवान् महावीर जो वीर, अतिवीर, सब जीवों का उदय ही भगवान् महावीर का लक्ष्य सन्मति और वर्द्धमान के नाम से भी जाने था। महात्मा गांधी के अनुयायियों द्वारा प्राचार्य जाते हैं।
विनोबा भावे के नेतृत्व में चलाया जा रहा सर्वोदय राजकुल में जन्म लेकर भी तीस वर्ष की
• में जन्म लेकर भी सीसी अान्दोलन शायद भगवान् महावीर के विचारों से अल्पायु में उन्होंने घर छोड़ दिया और बारह वर्ष
ही प्रेरित है । सब लोगों को समान अवसर और तक निर्जन वन में तपस्या की। धर्म के नाम पर
___ सुविधायें दिलाने की बात जो आज हम कर रहे पशु बलि होती थी और सर्वत्र हिंसा का ताण्डव
हैं, भगवान् महावीर ने उस समय में ही यह जान था । महावीर इससे बहुत क्षुब्ध थे । इसीलिये
लिया था कि यह आवश्यक है । महावीर का स्पष्ट उन्होंने अहिंसा का प्रचार करने का व्रत लिया।
मत था कि दूसरों का बुरा चाहकर कोई अपना उन्होंने कहा-मोह, राग और द्वेष को जीत लिया
भला नहीं कर सकता । भगवान महावीर स्त्रीतो अपने को जीत लिया और अपने को जीत
पुरुषों की समानता में भी विश्वास करते थे। लिया तो जग जीत लिया और अपने को जान
अाज के तथाकथित सभ्य समाज में आज भी यह लिया तो जग जान लिया। महावीर केवल जैनों
लक्ष्य कोसों दूर है । आज भी समाज पुरुष-प्रधान के ही नहीं थे, वे तो सब के थे। उनकी नजर में
: है। विश्व को इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पिछले छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं था, न जाति-पांति का
- वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष मनाना पड़ा और जब भेद था । वे तो प्राणिमात्र से प्रेम करना सिखाते
है यह देखा गया कि एक वर्ष में कोई विशेष सफलता थे। क्योंकि उनमें भी प्राण हैं । भगवान् महावीर
नहीं मिली तो अन्तर्राष्ट्रीय महिला दशाब्दी मनाने
का निश्चय किया गया। के अनुसार संसार में श्रेष्ठ वही है जिसका प्राचार और विचार श्रेष्ठ है और इसके लिये अहिंसा अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, अहिंसा व अपरिग्रह अावश्यक है । महात्मा गांधी भगवान महावीर के भगवान् महावीर के चार प्रमुख सिद्धान्त हैं । प्रथम अहिंसा सम्बन्धी विचारों से बहुत प्रभावित थे तीन आचार्यों व पंडितों की व्याख्या के विषय हैं। महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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