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हैं। कालिदास ने पूर्वमेघ के ५५वें श्लोक में क्षेत्र की स्थापना करते हैं ।34 उपयुक्त करण विगम कहा है कि शिव के चरणों में भक्ति रखने वाले शब्द का अर्थ प्रायः सभी टीकाकारों ने शरीर त्याग करणविगम के अनन्तर शिव के गणों का स्थिर किया है । प्राचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इसकी नई पद प्राप्त करने में समर्थ होते हैं । इस करणविगम व्याख्या की है । उनके अनुसार करणविगम का सीधा शब्द का प्रयोग पार्वाभ्युदय में भी हुआ है । वहां सादा अर्थ है, इन्द्रियों को उल्टी दिशा में मोड़ना, कहा गया है कि अर्हन्तभगवान के चरण-चिह्नों को अर्थात् इन्द्रियों को बाहरी विषय की ओर से मोड़देखने पर जिनके पाप नष्ट हो गए है ऐसे भक्ति कर अन्तर्मुखी करना । पार्वाभ्युदय में पार्श्व भी का सेवन करने वाले करणविगम के अनन्तर सिद्ध करणविगम की इस प्रक्रिया में लगे हुए हैं। ३३. शिशुपाल वध १।११ ३४. पार्वा. २०६६ ३५. हजारीप्रसाद द्विवेदी : कालिदास की लालित्य योजना पृ. १०७. .
आत्म-विजेता महावीर
श्री राजमल जैन 'बेगस्या', जयपुर मेरे महावीर ने इस दुनियां को जीता है, अस्त्र-शस्त्र से नहीं, वो इनसे तो रीता है। हिंसा से दुनियां को जीता वो मारे गये, अपने को जीतले वो हरदम ही जीता है ।।
अपने को जीतकर ही बीर महावीर हुये, गगन सम विशाल सिन्धु जैसे गम्भीर हुये । राज-पाट, सेना और ठाट बाट त्याग दिये, तन से फकीर आत्मा से अमीर हुये ।।
प्रात्मा का जो अमीर वो ही भगवान् है, वो ही महावीर और उसका ही गान है। राज-पाट, वैभव के धारी न पूज्य हुये, आत्म विजेता ही जग में महान् है ।।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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