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* आवाज सुनी, भाग गया। *
पं० उदयचन्द्र 'प्रभाकर' शास्त्री जैनदर्शनाचार्य, एम० ए० (रिसर्च स्कालर)
जंवरीबाग नसिया, इन्दौर चित्रपट देख, वट वृक्ष की छाह में बैठ गया, न जाने कब तक सोचता रहा शायद ज्ञानरश्मि बिखरेगी मंद पवन से, सो गया, न जाने कहां खो गया । सामने, ओ सिंह ! तुम अभी तक खड़े हो, मेरी जान लेने पर क्यों तुले हो, समझा, महावीर के यार, मैं लगाना चाहता इश्तहार सच, तुम मेरे ही हो न मगर उत्तीर्ण हो सकोगे क्यों नहीं, प्रावाज सुनी, भाग गया ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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