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[6] निरख तव पावन रूप अनूप, शची पुनि किया सुरुचि शृंगार, पुलक कर लोचन किये हजार । हुलस सुरपति ने तांडव नृत्य । मेरु पर स्वर्ण कलश भर क्षीर, __ तुम्हारी निरख निराली शान, नीर से न्हवन किया बहुबार । सकल जनवृद हुआ कृतकृत्य ।
[१०] अमरगण धर बालक का रूप, संग तव की क्रीड़ा मनुहार । वृद्धि को प्राप्त हुए सानंद,
दूज के चन्द्र समान कुमार । [११]
[१२] चतुर्दिक छाया हर्ष प्रकर्ष, तुम्हें था ज्ञात सनातन सत्य, हुए घर-घर में मंगल गान । कि है सब विधि संसार असार । सजे सब सुख संपति के साज, अतः किंचित् निमित्त पा धन्य, दुःखी नहिं रहा कहीं इन्सान । तजा सब राज-साज परिवार ।
- [१३ ] दिगम्बर बने, मुक्ति का लक्ष्य, तपश्चर्या की सतत् कठोर । साधना रत रह अतुल पवित्र,
हुए जब शुक्लध्यान विभोर । [ १४ ]
[१५] किये तब घातिकर्म चकचूर, प्राणिहित दिया धर्म संदेश, ज्ञान की ज्योति जगी अम्लान । हुआ पाखंड़ों का मुंह म्लान । प्रस्फुरित हुया शुद्ध चिद्रूप, दिव्यध्वनि द्वारा किया समस्त, अतीन्द्रिय परमाह्लाद निधान । विश्व को सम्यक्ज्ञान प्रदान ।
. अंत में सज कर परम समाधि,
बन गये मुक्ति रमा के कांत । कर्म बन्धन से बन उन्मुक्त,
हुए गंभीर सिंधु सम शांत । [ १७ ]
[१८] सच्चिदानंद स्वरूपी सिद्ध, अगुरुलघु अव्यावाध प्रधान, निरंजन निर्विकार निष्काम । सकल प्रकटे गुण रत्न महान् । अक्षयानंत ज्ञान हग वीर्य, हमें भी स्वानुभूति सुख साज, सूक्ष्मता अवगाहन गुणधाम । सजा दो वर्द्धमान भगवान् ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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