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________________ [८] [6] निरख तव पावन रूप अनूप, शची पुनि किया सुरुचि शृंगार, पुलक कर लोचन किये हजार । हुलस सुरपति ने तांडव नृत्य । मेरु पर स्वर्ण कलश भर क्षीर, __ तुम्हारी निरख निराली शान, नीर से न्हवन किया बहुबार । सकल जनवृद हुआ कृतकृत्य । [१०] अमरगण धर बालक का रूप, संग तव की क्रीड़ा मनुहार । वृद्धि को प्राप्त हुए सानंद, दूज के चन्द्र समान कुमार । [११] [१२] चतुर्दिक छाया हर्ष प्रकर्ष, तुम्हें था ज्ञात सनातन सत्य, हुए घर-घर में मंगल गान । कि है सब विधि संसार असार । सजे सब सुख संपति के साज, अतः किंचित् निमित्त पा धन्य, दुःखी नहिं रहा कहीं इन्सान । तजा सब राज-साज परिवार । - [१३ ] दिगम्बर बने, मुक्ति का लक्ष्य, तपश्चर्या की सतत् कठोर । साधना रत रह अतुल पवित्र, हुए जब शुक्लध्यान विभोर । [ १४ ] [१५] किये तब घातिकर्म चकचूर, प्राणिहित दिया धर्म संदेश, ज्ञान की ज्योति जगी अम्लान । हुआ पाखंड़ों का मुंह म्लान । प्रस्फुरित हुया शुद्ध चिद्रूप, दिव्यध्वनि द्वारा किया समस्त, अतीन्द्रिय परमाह्लाद निधान । विश्व को सम्यक्ज्ञान प्रदान । . अंत में सज कर परम समाधि, बन गये मुक्ति रमा के कांत । कर्म बन्धन से बन उन्मुक्त, हुए गंभीर सिंधु सम शांत । [ १७ ] [१८] सच्चिदानंद स्वरूपी सिद्ध, अगुरुलघु अव्यावाध प्रधान, निरंजन निर्विकार निष्काम । सकल प्रकटे गुण रत्न महान् । अक्षयानंत ज्ञान हग वीर्य, हमें भी स्वानुभूति सुख साज, सूक्ष्मता अवगाहन गुणधाम । सजा दो वर्द्धमान भगवान् । 1-144 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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