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________________ [ २ ] तुम्हारी गुरण गरिमा अविराम, पाठ, न सुर- गणपति कर सके बखान । जिन्होंने द्वादशांग कर किया था प्राप्त सकल श्रुतज्ञान | नगर का कर सजा धनपति ने महावीर संस्तवन [ ५ ] गात, देव बालाएँ पुलकित चलीं मां की परिचर्या काज । महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International [ १ ] विभो ! तत्र करते प्रिय गुणगान, मिटे अंतर का चिर अज्ञान । मनुज भव हो जाये धनिधन्य, वीतराग - विज्ञान | प्राप्त कर नूतन निर्माण, अनुपम साज । ४ पं० नाथूराम डोंगरीय जैन, न्यायतीर्थ, इन्दौर | ] गर्भ अवतरे न तुम तिस पूर्व स्वर्ग हर्षाया अपरंपार । बिडोजा का पाकर निर्देश, बरसने लगी रत्न की धार । [ ३ ] मंदमति, कहाँ प्राप, कहाँ मै अतुल गुरण मूर्ति प्रकट अम्लान । हृदय हो रहा तथापि अधीर, भक्ति वश करने तव गुण गान । [ ६ ] स्वप्न सोलह माता गर्भ मंगलमय प्रभु का मुदित मन ही मन हुई जनों में छाया हर्ष [ ७ ] मास नव बीत अंत में प्राश हुई जान प्रभु जन्म किया इन्द्र ने साज सकल परिवार । प्रस्थान, गये सानंद, साकार For Private & Personal Use Only अवलोक, जान । असीम, महान् । 1-143 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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