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में
रुला रही है। यदि
तो उसे उसकी प्राप्ति
सम्मिश्रण न हो अनन्त
प्रत्येक जीव की केवल एक ही इच्छा होती है वह सुखी हो किन्तु जिसे वह सुख समझकर ग्रहण करता है वह वास्तव में सुख न होकर दुःखों की परम्परा को बढ़ाने वाला होता है । जीव की यह भूल ही उसे श्रनन्त काल से संसार सागर जीव सच्चे सुख का स्वरूप समझ उसकी प्राप्ति का सदुप्रयत्न करे होना सहज है । जीव की ऐसी अवस्था जिसमें किसी अन्य तत्व का सुखमय होती है। इसकी प्राप्ति का उपाय करने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि वह जीव है क्या ? तब तो उस दिशा में प्रयत्न हो सकेगा । इसीलिए प्रयोजनभूत सात तत्वों में जीव का प्रथम स्थान है और मुक्ति के मार्ग पर चलने की सबसे पहली शर्त है जीव के शुद्ध स्वरूप का श्रद्धान । उस जीव के संबंध में कुछ जानकारी जैन शास्त्रों के अाधार से उदीयमना लेखिका दे रही हैं अपनी इन पंक्तियों में ।
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समस्त मानवीय विचारधारा को मुख्यतः दो धारात्रों में विभक्त किया जा सकता है - प्रथम आध्यात्मिक एवं द्वितीय भौतिकवादी । श्राध्यात्मिक विचारधारा की आधारभित्ति " श्रात्मवाद" है और भौतिकता का मूलमन्त्र है " अनात्मवाद" । प्रायः सभी भारतीय दार्शनिकमत प्राध्यात्मिक विचारधारा से ओतप्रोत हैं, उनका समवेत स्वर है - श्रात्मा ही दर्शनीय, श्रवरणीय, मननीय और ध्यान करने योग्य है, क्योंकि सभी आध्यात्मिक दर्शनों का प्रारंभ आत्मा से और ग्रन्त मोक्ष ( श्रात्मा की चरम परिणति अथवा आत्मा के लक्ष्य की प्राप्ति) से होता है । जैन - दर्शन, भारतीय-दर्शनवृक्ष की पूर्ण पल्लवित शाखा है, अतः वह इसका अपवाद नहीं है।
जैन - दर्शन का ध्येय है - प्राध्यात्मिक अनुभव, आत्मा की अनुभूति होना । आत्मा, जिसे "जीव"
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
जैन-दर्शन में जीव द्रव्य का स्वरूप
कुमारी प्रीति जैन, एम० ए०, जयपुर
प्र० सम्पादक
भी कहा गया है, जैन- दर्शन में स्वतन्त्र, मौलिक द्रव्य माना गया है, जिसका असाधारण लक्षरण चेतना है । सामान्यतः सभी प्रात्मवादी दार्शनिकों ने जीव (ग्रात्मा) को नित्य चैतन्ययुक्त स्वीकार किया है। जैनों के अनुसार जीव ज्ञान - चैतन्य स्वरूप तथा सदा प्रकाशयुक्त है, इन्हीं विशिष्टताओं के कारण वह समस्त जड़ द्रव्यों से अपना पृथक् ग्रस्तित्व रखता है। ज्ञान जीव का एक विशिष्ट गुण अथवा शक्ति है, जिसके कारण जीव की (कुछ) जानने की प्रवृत्ति होती है । यथार्थ रीति से वस्तु को जानना ही ज्ञान है, दूसरे शब्दों में सत्यार्थ का प्रकाश करने वाली शक्ति को नाम ज्ञान है । परन्तु ज्ञान को जीव का गुण मानने से यहां एक प्रश्न उपस्थित होता है कि ज्ञान जीव का प्रोपाधिक गुण है अथवा स्वाभाविक गुरण है ? अथवा जीव व ज्ञान में सांयोगिक ( किसी संयोग
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