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करते हैं अतः शुद्धात्मा के ध्यान के लिए व्यवहार ही मिलते हैं तो विवेकीजन किसमें आदर करेंगे ? नय के आश्रय से व्यवहार चारित्र ग्रहण करना अर्थात् पंचेंद्रियों के विषयसुख खली के टुकड़े के आवश्यक है । यह चिंतामणि स्वरूप प्रात्मा प्रत्येक । सदृश हैं तथा धर्म चिंतामणि रत्न है और उस व्यक्ति के घट में विराजमान है उसका फायदा धर्म से परिणत हुई अात्मा भी स्वयं चिंतामणि उठाना चाहिए।
रत्न है।
पूज्यपाद स्वामी ने कहा भी है कि
जाचें सुरतरु देय सुख चिंतित चिंतारैन । इतश्चितामणिदिव्यः इतः पिण्याकखंडकं । बिन जाचे विन चिंतये धर्म सकलसुख देन । ध्यानेनचेदुभे लभ्ये क्वांद्रियंतां विवेकिनः ।।
यह धर्मरूपीचिंतामणि रत्न बिना चिंतवन के ___ इधर चिंतामणि रूप दिव्यरत्न है और दूसरी ही संपूर्ण सुखों को देने वाला है अतः आत्मा को तरफ खली का टुकड़ा है। यदि ध्यान से दोनों धर्ममय बना लेना चाहिए ।
1. कल्पवृक्ष ।
2. चिंतामणि ।
जीव की प्रज्ञान दशा" यह प्राणी संसार दशा में,
भूल रहा शुद्धात्म स्वरूप । देह तथा रागादि भाव को,
भ्रमवश मान रहा निज रूप ।। मेरी हैं रागादि विवृतियां,
कर्मजन्य पुद्गल परिणाम । यो भ्रमबुद्धि बनी रहने तक,
अप्रतिबुद्ध हैं आतमराम ॥
*समयसार वैभव से साभार
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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