________________
भाज हमारी समाज में निश्चय और व्यवहार को लेकर दो दल से हो गए हैं और एक दल दूसरे को शास्त्रों का आधार लेकर गलत सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहा है किन्तु उनके लेखों को और वक्तव्यों को जब कोई पढ़ता है तो सामान्य पाठक यह ही समझता है कि ये ठीक कहते हैं। उसे समझ ही नहीं पड़ता कि मतभेद कहां है ? क्योंकि जिस अपेक्षा से एक विद्वान् कोई बात कहता है तो वह उस अपेक्षा से एकदम सही होती है किन्तु वही बात दूसरी अपेक्षा से गलत मालूम होती है। यदि अपेक्षाभेद के इस रहस्य को ठीक तौर से समझ लिया जाय तो कहीं कोई मतभेद रह ही नहीं सकता। यही स्याद्वाद है और जो जैनों की एक विशेष थाती है। वह विभिन्न सापेक्ष सत्यों को एकत्र कर एक पूर्ण सत्य का निर्माण करता है और विभिन्न मत मतान्तरों का समन्वय कर उन्हें एक माला में पिरोता है । स्याद्वाद के इस सिद्धान्त को भली प्रकार हृदयंगम कर उसे अपने जीवन में उतारने की प्राज महती मावश्यकता है।
प्र० सम्पादक .
सन्मति का समन्वयात्मक सिद्धांत स्याद्वाद
डॉ० कन्छेदीलाल जैन एम० ए० (संस्कृत हिन्दी) साहित्याचार्य, साहित्य
काव्यतीर्थ, पी० एच० डी० आदि । राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, शहडोला
प्रत्येक पदार्थ अनेक गुण वाला होता है इसलिए कर सुगन्धित बताता है। पांचवां प्रादमी उसके सन्मति महावीर ने अनेक अन्तों (धर्मों) के कारण मूल्य की विवक्षा समझकर 'मंहगा है' कहता है। वस्तुमों को अनेकान्तात्मक स्वीकार किया है। उन आम में ये सभी बातें हैं, अतएव सभी का कथन अनेक धर्मों या गुणों में से बक्ता जन अपने दृष्टिकोण अपने अपने दृष्टिकोण से सही है। ........ से एक धर्म या गुण का प्रतिपादन करता है, और उस समय दूसरे धर्मों के रहते हुए भी उनका प्रत्ति
विज्ञान के क्षेत्र में प्राइंस्टीन ने एक सापेक्षवाद पादन नहीं किया जाता है । प्रतिपादन की इस
का सिद्धांत स्वीकृत किया है । विज्ञान का यह शैली का नाम स्याद्वाद है। उदाहरण के लिए
सिद्धांत स्याद्वाद के सिद्धांत से मिलता जुलता है ।
यद्यपि विज्ञान के क्षेत्र में यह सिद्धान्त अभी का एक प्रश्न किया गया कि ग्राम कैसा है। एक प्रादमी प्राम के रूप की विवक्षा समझ कर उसे
अर्थात् बहुत बाद का है. पीला बताता है, दूसरा आदमी उसके रस की सापेक्षवाद (Relativity) का सिद्धान्त विज्ञान विवक्षा समझकर मीठा बताता है, तीसरा आदमी ने स्वीकृत किया है वह भौतिक पदार्थो के सम्बंध उसके स्पर्श की विवक्षा समझकर ग्राम को कोमल में ही लागू होता है । अनेकान्त के द्रव्य, क्षेत्र, काल बताता है । चौथा आदमी गन्ध की विवक्षा समझ- और भाव की दृष्टि से चार भेद होते हैं। विज्ञान महावीर जयन्ती स्मारिका 76
1-153
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org