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कामुकता की भावना काम करती है। नग्नता में भस्म करके-विषय-वासना, इच्छा-कामना की और दिगम्बरत्व में बाह्य दृष्टि से, अर्थ की दृष्टि आहुति देकर मोक्षमार्ग पर जो निकल पड़े उसे से कोई भेद शायद साधारण रूप में किसी को किस पाथेय की आवश्यकता होगी? वह दिगम्बरत्व नजर न आये लेकिन इनमें भारी अन्तर है। नहीं होगा तो क्या होगा ? जो सर्वांग ज्ञान की नग्नता में भौतिकता है, दिगम्बरत्व में आध्यात्मि- खोज में भरा-पूरा घर क्या पूरा राज्यवैभव ठुकराकता। नग्नता के पीछे वासना की भावना है, कर अकिंचन और आत्मनिष्ठ होकर निकलेगा दिगम्बरत्व में अात्मिक विकास की, त्याग की वह क्या संसार की जड़ता को देखेगा, उसे छाती से भावना है । नग्नता में अशिष्टता, अश्लीलता और लगाएगा ? यह दिगम्बरत्व ही उनकी अपार बेशर्मी होती है, दिगम्बरत्व में शिष्टता, श्लीलता, सम्पदा थी। दर असल दिगम्बरत्व अपने में एक और शर्म-मोहया होती है । नग्नता में हम दूसरे की दर्शन है, ऐसा दर्शन जो सब से सरल व सुबोध, नग्नता में ( उसके प्रांगिक आकर्षण में ) प्रवेश लेकिन व्यवहारतः सबसे अधिक दुष्कर, कठिन । करते हैं जबकि दिगम्बरत्व में अपने में प्रवेश किया जाता है-आत्मा में प्रवेश करने की अोर अभ्यो
डा० इकबाल कहते हैं 'मन गुलाम अांके न्मुखी हुआ जाता है। नग्नता में भौतिकता होने बरखुद काहिर अस्त' यानी मैं उस व्यक्ति को के कारण वैभव-विलास का जजबा मौजूद रहता है,
___ आदरणीय-अभिनन्दनीय समझता हूँ जो अपनी दिगम्बरत्व में आध्यात्मिकता होने के कारण
ख्वाहिशात को अपने काबू में रख सकता है अर्थात् आत्मिक विलास का सागर तरंगित होता है ।
जो अपने 'नफ्स' पर कादिर है। अपने नफ्स पर नग्नता में मन की कलुषता की पंक भरी रहती है,
अधिकार रखना, इन्द्रियजयी बनना कोई साधारण दिगम्बरत्व में मन की पवित्रता के पंकज विकसित उपलब्धि नहीं । कुरान में उल्लिखित हैहोते हैं । नग्नता भोग का, दिगम्बरत्व त्याग का
'मन अराफा नफसाहू फकद अरफा रब्बाहुँ-जिसने प्रतीक है । इस प्रकार दोनों में जमीन व प्रासमान
अपने 'नफ्स' की मारिफत हासिल करली उसने का अन्तर है । नग्नता नीचे की ओर खींचती है
अपने रब (ईश्वर) की मारिफत हासिल करली । अधमता की ओर, दिगम्बरत्व आकाश की ओर ले और यही मारिफत तो मुक्ति है, मोक्ष है। जाता है-ऊर्बोन्मखी ग्राम पर दिगम्बरत्व के मोक्षोन्मुखी मार्ग पर चलना तलवार की दशा है । महावीर इसी दिगम्बरत्व की साकार
की धार पर अनुधावन करना है। सच्चा प्रेमी ही प्रतिमा हैं।
ऐसे विलक्षण मार्ग का पथिक बन सकता है। इस
मार्ग पर चलना ऐरे-गैरे के बूते की बात कहां ? महावीर का दिगम्बरत्व वीतरागजन्य है, उनकी वीतरागमुद्रा ही दिक् अम्बर है-गगनपरि- कश्मीर की प्रसिद्ध कवयित्री (१३ वीं शती धान है, वहां राग कहां, इन्द्रिय-धर्म कहां? में ) नंगी ही फिरती थी। हिन्दू उसे 'लल्लद्य' सम्पूर्ण त्याग है, निःकांक्षा है, निःस्पृहा है। और मुसलमान 'लल पारिफा' कहते हैं दोनों धमों सत्य एवं तपोनिष्ठ महावीर का दिगम्बरत्व के अनुयायी उसका समान आदर करते हैं । हिन्दू था-'मोक्षमार्गमवाग्-विसर्ग वपुषा निरूपयन्तम्'। उसके 'वाक्' मन्दिरों में सस्वर उच्चरित करते हैं उनके दर्शन ही--दिगम्बरत्व को देखकर ही ऐसा तो मुसलमान मस्जिदों में पढ़ते हैं। उसने अपने अनुभव होता है कि वह मोक्षमार्ग का अनुगमन कर समय भी लोगों से प्रादर प्राप्त किया था । एक रहे हैं । ब्रह्मचर्य एवं तपाग्नि में अपना सब कुछ योगिनी थी वह, निर्गुण भगवान् की उपासिका। 1-158
महावीर जयन्ती स्मारिका 76 .
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