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भ० महावीर ने कहा-विचारों में अनेकान्त हैं। क्या हजार वर्ष भी मुद्राओं से भरी तिजोरी हो, वाणी में स्याद्वाद । वैयक्तिक आचरण में की पूजा से उसकी मुद्रायें उपलब्ध हो सकती हैं ? अहिंसा हो और सामाजिक आचरण में अपरिग्रह। करोड़ अभ्यर्थनामों से भी अंधकार को नहीं भगाया जब विचारों से पक्ष-व्यामोह और वाणी से जा सकता है। उसके लिए तो पालोक भरा दीप एकान्तनय की भाषा गिर जाती है तो आचरण चाहिए। क्या हृदय में ऐसा दीप सँजोकर किसी ने में सबको अपनाने का भाव सहज आ जाता है। महावीर को खोजने का साहस किया है ? अनेकान्त वह किसी प्रकार का आरोपण, बल या अतिक्रमण आकाश के उस सूर्य को परिग्रह की बदलियों में नहीं चाहता। वह अपने में सबको और सब में ढंककर नहीं देखा जा सकता। हजार शास्त्रों का अपने को देखने लगता है। प्राचरण की इस आलोडन भी हमारी ज्ञान-क्रान्ति का हेतु नहीं बन भाव भूमि में अहिंसा का उदय होता है। अतः पा रहे हैं। कौनसी बात रह गयी जो हमें और अहिंसा सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और मैत्रीपूर्ण भ० महावीर को इतने फासले पर खड़ा किये है ? जीवन-पद्धति है । अहिंसा की तेजस्विता में व्यक्ति आज परिग्रह के महलों में अपरिग्रह बंद कर दिया चींटी में भी विराट अस्तित्व देखने लगता है। गया है। हमारे परिग्रह ने महावीर जैसे अनन्त यही अहिंसा जब सामाजिक जीवन में उतरती है व्यक्तित्व को मंदिरों की चहार दीवारों में बंद कर तो अपरिग्रह के रूप में प्रगट होती है। वस्तुतः दिया है । धर्म के नाम पर बाहर कुछ भी संयोजन परिग्रहातीत होकर ही अहिंसा के सूर्य को प्रगट करलें लेकिन जब तक इसका संयोजनकर्ता, किया जा सकता है।
अमूच्छित चेतना, अप्रमाद और विवेक जागरण की
अन्तर्यात्रा के चरण नहीं धरता, तब तक महावीर क्या महावीर को पाना है ?
को पाने की कोई सम्भावना नहीं दिखती। आज के इस संक्रमण काल में जब मनुष्य, मनुष्य के अस्तित्व के लिए एक दुर्घटना बन रहा महावीर स्वामी की याद में बाहर आज बड़े २ है और वह विस्फोट को अपने हाथों में दबाये स्मारक बनाये जा रहे हैं, लेकिन भीतर के टूटते राजनीति के दुष्चक्र में सांसें ले रहा है, महावीर खण्डहर के जीर्णोद्धार की कोई शिल्प-साधना पैदा ज्यादा सामयिक बन गये हैं। यदि प्रेम की आंख नहीं हो पा रही है। अपने भीतर के निर्माण के खोजें तो महावीर कहीं खोये नहीं हैं। लेकिन हम लिए उस शिल्पी को निमंत्रण देना होगा और उन्हें अर्चनाओं में खोज रहे हैं और आज हमारी उसके साथ ही भ० महावीर स्वयं प्रतिबिम्बित उम्र भर की गयी पूजायें कृतार्थ नहीं हो पा रही हो जायेंगे।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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