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विषय - विभोग विलास-लास करतीं सुन्दर-सुरबाला, रिक्षा सकीं किंचित न तुम्हें प्रभु, भवसुख की मधुशाला । मोह, मान, मद, मत्सर, मिथ्या भवसुख क्षणभंगुर हैं, नाशवान त्रैलोक्य सम्पदा वैभव राज प्रथिर हैं । पतझड़ होता रहा सदा से, गंध भरा उपवन है । विश्ववंद्य सुखकंद धन्य, जगनायक तुम्हें नमन है ।।
हिंसामय था विश्व स्वार्थ के श्याम मेघ घिर आये, लंपट, निपट लोलुपी जन ने जन मानस भरमाये । अविचारी मानव समाज ने कुटिल कृत्य अपनाये, तुमने आकर धरा धाम पर ज्ञान सलिल बरसाये ।
जन कल्याण हेतु वैभव तज, वन को किया गमन है । विश्ववंद्य सुखकन्द धन्य, जगनायक तुम्हें नमन है ||
साय अहिंसा की मानव को दीं अभिनव - परिभाषा, अपरिग्रह व अचौर्य शील की जाग्रत की जिज्ञासा । नवचरित्र-निर्मारण राष्ट्रहित सर्वोपरि बतलाया, 'क्षेमं सर्व-प्रजानाम्' का मंगलमय मंत्र जगाया ।
कहां रहेगी शांति जगत में, सुखी न जब तक जन है । विश्ववंद्य सुखकंद धन्य, जगनायक तुम्हें नमन है ॥
अर्ध मागधी भाषा में जब दिव्य ज्ञान ध्वनि बरसी, निज निज भाषा में जीवों ने समझ सुमति मन सरसी । कृत-कृत्य हो गई धरा सुन ज्ञान भरी जिनवाणी, नत मस्तक हो गए विश्व के बड़े-बड़े अभिमानी ।
सिंह, गाय, मृग, सर्प, मयूरों को इक चरण शरण है । विश्ववंद्य सुखकंद धन्य, जगनायक तुम्हें नमन है ॥
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आओ ! मिल कर आज अहिंसा के जलधर बरसादें, राष्ट्र- राष्ट्र में देश-देश में मंत्री भाव जगादें । मानवीय अधिकारों का दुनियाँ में नहीं हनन हो, देश-देश में सुखद वीर वाणी का मधुर मनन हो ।
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भूले-भटके, प्राणिमात्र को जिनवर धर्म शरण हैं । विश्ववंद्य सुखकंद धन्य जगनायक तुम्हें नमन हैं ||
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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