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जगनायक तुम्हें नमन हैं
• श्री घासीराम जैन 'चन्द्र', शिवपुरी
विश्ववंद्य सुखकंद धन्य, जग नायक तुम्हें नमन हैं। जय सन्मति जय वीर, शान्ति के दायक तुम्हें नमन हैं ।
भूतल पर अज्ञान तिमिर के घन जब चहुँ दिश छाये, तुम त्रैलोक्य-प्रकाश पुज रवि-किरण-कुज बन आये। कुडलपुर सुरधाम बना तब सुरपति वन्दन आये,
हरषित हृदय विभोर जगत के जीव सभी हरषाये । चली चतुर्दिश चारु सुगंधित चंचल-चपल पवन हैं। विश्ववंद्य सुखकन्द धन्य, जग नायक तुम्हें नमन हैं ।।
राज भवन में राज पुत्र जब आये वैभव बलशाली, स्वर्ण-रत्न-मणि पूर्ण धरा थी धन्य हुई वैशाली । बाल मयंक अंक में भर-भर माँ-त्रिशला हरषाई,
सिद्धारथ नृप के प्रांगन में सकल सम्पदा पाई। अाज गगन में भूमि, भूमि में अथवा नील-गगन हैं। विश्व वंद्य सुख कन्द धन्य, जगनायक तुम्हें नमन हैं ।।
भरा विपुल-नैराश्य व्याप्त थी धरती बलिदानों से, कुठित थी जन-जन की वाणी व्याकुल अपमानों से । अश्वमेघ, गोमेघ और नरमेध यज्ञ कहलाते,
पुण्य बंध के हेतु अग्नि में मानव होमे जाते । क्रंदन करती थी निष्ठा, श्रद्धा का हा दमन है। विश्ववंद्य सुखकन्द धन्य, जगनायक तुम्हें नमन है ।।
पालन हा सकल वैभव में स्वर्ण-पालना झूले, लालन हुया लाल धरती पर पंकज बनकर फूले । सौम्य-सरल, सम्यक्, गुण गरिमा भरी बाल वय पाई,
दोयज-'चन्द्र' समान वृद्धि कर पाई नव तरुणाई। निज स्वभाव में लीन, न भाये जिनको स्वर्ण भवन हैं। विश्ववंद्य सुखकंद धन्य, जगनायक तुम्हें नमन हैं ।।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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