________________
है। मैंने तब कहा था, "भले प्राणी! जिनेन्द्र जागृत द्रष्टा के दर्शन होते हैं । खुली आँख से सपन दिखते हैं और हम भक्तजन सुप्त-प्रसुप्त । यदि सोता हुआ हैं और बन्द आँख से अपन के अभिदर्शन हुआ जगे को जगाये तो इससे बड़ी मखौल और क्या करते हैं। अपन बोध ही आत्म बोध है। पूजाहोगी ।" वास्तविकता यह है कि आँख खोलकर अर्चन अपनी भीतरी उपस्थिति में सम्पन्न हो तो देखने पर दृश्य ही दिखते हैं। दृश्य मोहक-मनोहर प्रभुपूजा सार्थक होती है फिर मंद अथवा दीर्घ स्वर होते हैं किन्तु नश्वर और क्षणिक । फिर क्षणिक में पूजा पाठ करने का प्रश्न गौण हो जाता है। और नश्वर की आराधना निरी निरर्थकता नहीं तो जैनदर्शन में इसलिये भाव-पूजा का महनीय महत्त्व और क्या है । बन्द अाँख से देखने पर दृश्य नहीं है।
कुछ मुक्तक
डा० सुरेशचन्द जैन, लखनादौन (म० प्र०)
निशाने पर लगे जा कर उसे हम तीर कहते हैं। जो चमके रण में खुल कर उसे समशीर कहते हैं ।। हमाग सबसे बड़ा शत्रु है संसार की माया । इसे जो जीत कर दमके उसे महावीर कहते हैं ।
समय की पुकार पर जिसका कि कान है। दुनियां के दुख दर्द पर जिसका कि ध्यान है। अपने को जीतकर जो अालम को जीतता है। भगवान वही, वीर वही, वर्धमान वही है ।।
कुटिल हिंसक जगत के सामने रणधीर आया था। दुखी मानवता पांचाला का बनकर चीर आया था । कि कंदन मूक पशुओं का सुना तो उठ दौडा। पढ़ाने पाठ अहिंसा का जगत में महावीर आया था ।।
अद्भुत था वीर शासन केवल नहीं कहानी। सिंह-गाय मिलकर पीते थे साथ पानी ।। सम्यक शत चरण से प्राबद्ध थी प्रजा सब । था सत्य जिनका राजा थी प्रिय अहिंसा रानी ।।
1-120
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org