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* वीर नहीं महावीर हो गये * हास्य कवि-श्री हजारीलाल जैन 'काका'बुन्देलखंडी
पो० सकरार
जिला झांसी (उ. प्र.) संयम, शील, साधना के शस्त्रों से ही तुम, ऊंच नीचे के, राग द्वेष के, राक्षस का आस्तित्व खा गये, इसीलिये तो आज विश्व की नजरों में तुम, शांति प्रदाता, भाग्य विधाता, वीर नहीं महावीर हो गये।
धर्म समझ कर अग्निकुण्ड में जब पशुओं को, । पकड़ पकड़ कर, मार पीट कर, निर्दयता से झोंका जाता, सती नाम पर दीन हीन निर्बल नारी को, बिना राय के, हर उपाय से, पति के साथ जलाने का नित मौका आता, तब, “जियो और जीने दो" का सन्देश सुनाकर, निर्बल, हीन, अनाथ, दीन की, आप स्वयं तकदीर हो गये, इसलिये तो आज विश्व की नजरों में तुम, शांति प्रदाता,
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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