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सन् १९७५ का वर्ष संयुक्त राष्ट्रसंघ के निर्देशों के अनुसार नारी वर्ष के रूप में मनाया गया जिसमें नारी उत्थान और जागरण के विभिन्न कार्यक्रम समायोजित किये गए। यह ही वर्ष भगवान् महावीर के २५०० वें निर्वाण वर्ष के रूप में भी मनाया गया जिसमें भ० महावीर के उपदेशों का व्यापक प्रचार प्रसार किया गया। अतः यह उचित ही है कि भ० महावीर के दर्शन में नारी की क्या स्थिति है और वह कहां तक उसके उत्थान में सहायक हो सकता है इस प्रश्न पर चिन्तन मनन किया जाय। प्रस्तुत है यहां एक महिला के इस सन्दर्भ में तथ्यपूर्ण विचार जिन के अनुसार भ० महावीर के बताए मार्ग का अनुगमन करने से ही महिला समाज अपना प्रतीत का खोया गौरव पुनः प्राप्त कर सकती है।
प्र० सम्पादक
स्त्री स्वातन्त्र्य और महावीर
.डॉ० श्रीमती राजेश्वरी भट्ट प्राध्यापिका लालबहादुर शास्त्री कालेज, जयपुर
सन् 1975 का वर्ष न केवल भारतीय नारी है आदि वाक्यों से स्पष्ट होता है कि उस समय के लिए अपितु समस्त विश्व के स्त्री समाज की नारी की स्थिति क्या थी ? स्वतन्त्रता के लिए महत्वपूर्ण वर्ष था। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशन में समग्र विश्व में नारी . भगवान् महावीर के आविर्भाव के समय नारी
जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रात्मतन्त्र नहीं थी। यहां स्वातन्त्र्य के विषय में जितने प्रयास इस युग में
तक कि उसे धर्म के उपदेशों के श्रवण से भी वंचित किये जा रहे हैं याज से 2500 वर्ष पूर्व भ०. महावीर ने उन्हें चरितार्थ भी कर दिया था।
रखा जाता था। नारी पुरुष के हाथों की कठपुतली
मात्र थी जिसे वह जिस तरह चाहता, नचा देता । धार्मिक क्षेत्र में स्त्री को प्राचार्य पद की प्रतिष्ठा
बड़े-बड़े श्रेष्ठी एवं सामन्त नारी को अपने भ्र मंग प्रदान करने का श्रेय इन्हीं महामना को है।
पर नचाते थे। चन्दन बाला का जीवनचरित वर्तमान सन्दर्भ में नारी स्वातन्त्र्य के विषय में
इस विषय में साक्षी है। . प्रयास करते समय यदि हम भगवान् महावीर के सत् आचरणों एवं उपदेशों से दिशा निर्देश प्राप्त
युग पुरुष भगवान महावीर से नारी की यह कर सकें तो श्रेयस्कर ही होगा।
उत्पीड़ित दुर्दशा देखी नहीं गयी। समाज में अन्य महावीर युगीन समाज में नारी जाति शोषण,
दलित वर्गों की भांति महावीर ने नारी को भी उत्पीड़न एवं महापतन से अभिभूत थी। “अस्वतन्त्रा
परतन्त्रता से मुक्ति दिलाने का हर सम्भव प्रयास
किया। स्त्री पुरुष प्रधाना" तथा 'स्त्रियो वेश्यास्तथा शूद्राः' नारी कदापि स्वतन्त्र नहीं है वह सदैव पुरुष के महावीर की दृष्टि में स्वतन्त्रता का वास्तविक अधीन है । स्त्रियां वेश्याओं एवं शूद्रों के समान अर्थ समस्त रागद्वेष एवं कर्मबन्धन से मुक्त होना ही
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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