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अर्जुनमाली, दृढ़प्रहारी, चंडकौशिक को समझाया आपणी भूल समझने वीर के शरण में आया प्रथम साध्वी चन्दना ने शाषन तो चमकाया
सति श्राविका सुलसा रा वीरने गुण गाया राजाओं में श्रेणिक वीर का भक्त कहलाया रे... पाताल रा
जन्म थी नहीं कर्म थी महान प्रभु ने बताया अनेकान्त - अपरिग्रह का पाठ तो पढाया संग्रह - खोरी -- जमाखोरी को पाप बतलाया लोभ - रिश्वत - राज चोरी को बुरा बताया लोभ वृति ने छोड़ो, दारण देणो सिखाया रे........पातान रा
अंत समय में प्रभुजी पावापुरी पधारीया ४८ पहर देशरणा सुनवा श्रोताजन जागीया काती वद ss दिन शीवधाम थे पामीया नंदीवर्धन बंधु ने घी के दीपो को रच दिया “भँवर" भक्तिभाव से वीर गाथा ने गाया रे......पाताल रा
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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