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कितने ही पक्षपाती लोग अन्य संस्कृतियों से इदं वपुर्वयश्चेदमिदं शीलमनीदृशं । प्रभावित होकर स्त्रियों के अधिकारों को तथा जैन- विद्यया चेद्विभूष्येत सफलं जन्म वामिदं ॥१७॥ धर्म की उदारता को कुचलते हुये भी अपने को विद्यावान् पुरुषो लोके सम्मति याति कोविदः । निष्पक्ष मानकर ग्रन्थकार बन बैठे हैं। जहां शूद्र नारी च तद्वती धत्ते स्त्रीसृष्टेरग्रिमं पदं ॥८॥ कन्यायें भी जिनपूजा और प्रतिमा प्रक्षाल कर तद्विद्या ग्रहणे यत्नं पुत्रिके कुरुतं युवां। सकती हैं। (देखो गौतम चरित्र तीसरा अधिकार) तत्संग्रहणकालोऽयं युवयोर्वर्ततेऽधुना ॥१०२॥ वहां स्त्रियों को पूजा प्रक्षाल का अनधिकारी
आदिपुराण पर्व १६ बताना घोर अज्ञान है। स्त्रियां पूजा प्रक्षाल ही
___अर्थात्-पुत्रियो ! यदि तुम्हारा यह शरीर, नहीं करती थीं, किन्तु दान भी देती थीं। यथा--
अवस्था और अनुपम शील विद्या से विभूषित किया श्रीजिनेन्द्रपदांभोजसपर्यायां सुमानसा।
जावे तो तुम दोनों का जन्म सफल हो सकता है । शचीव सा तदा जाता जैनधर्मपरायणा ॥861
संसार में विद्यावान् पुरुष विद्वानों के द्वारा मान्य ज्ञानधनाय कांताय शुद्धचारित्रधारिणे ।
होता है। अगर नारी पढ़ी लिखी-विद्यावती हो मुनीन्द्राय शुभाहारं ददौ पापविनाशनम् ॥87॥
तो स्त्रियों में प्रधान गिनी जाती है । इसलिये
पुत्रियो ! तुम भी विद्या ग्रहण करने का प्रयत्न -गौतमचरित्र, तीसरा अधिकार ।
करो। तुम दोनों को विद्या ग्रहण करने का यही . अर्थात्-स्थंडिला नाम की ब्राह्मणी जिन समय है। भगवान की पूजा में अपना चित्त लगाती थी और
इस प्रकार स्त्री शिक्षा के प्रति सद्भाव रखने इन्द्राणी के समान जैन धर्म में तत्पर हो गई थी। वाले भगवान आदिनाथ ने विधिपूर्वक स्वयं ही उस समय वह ब्राह्मणी सम्यग्ज्ञानी शुद्ध चारित्रधारी
पुत्रियों को पढ़ाना प्रारंभ किया। उत्तम मुनियों को पापनाशक शुभ आहार देती थी।
खद है कि उन्हीं के अनुयायी कहे जाने वाले इसी प्रकार जैन शास्त्रों में स्त्रियों की धार्मिक
कुछ लोग स्त्रियों को विद्याध्ययन, पूजा प्रक्षाल स्वतन्त्रता के अनेक उदाहरण मिलते हैं।
आदि का अनधिकारी बताकर उन्हें पूजा प्रक्षाल . जहां तुलसीदास जी ने लिख दिया है- करने से आज भी रोकते हैं। और कहीं-कहीं ढोर गंवार शूद्र अरु नारी।
स्त्रियों को पढाना अभी भी अनुचित माना जाता ये सब ताड़न के अधिकारी ॥
है। स्त्रियों को मूर्ख रख कर स्वार्थी पुरुषों ने उनके
साथ पशु तुल्य व्यवहार करना प्रारम्भ कर दिया वहां जैनधर्म ने स्त्रियों की प्रतिष्ठा करना और मन माने ग्रन्थ बनाकर उनकी भर-पेट निन्दा बताया है, सम्मान करना सिखाया है और उन्हें कर डाली। एक स्थान पर नारी-निन्दा करते हुए अधिकार दिये हैं। जहां वैदिक ग्रन्थों में वेद पढ़ने एक विद्वान् (?) ने लिखा हैकी आज्ञा नहीं है (स्त्री-शूद्रौ नाऽधीयाताम्) वहीं
प्रापदामाकरो नारी नारी नरकतिनी । जैनियों के प्रथम तीर्थंकर भगवान् आदिनाथ ने
विनाशकारणं नारी नारी प्रत्यक्षराक्षसी॥ स्वयं अपनी ब्राह्मी और सुन्दरी नामक पुत्रियों को पढ़ाया। उन्हें स्त्री जाति के प्रति बहुत सम्मान जिस प्रकार स्वार्थी पुरुष स्त्रियों के प्रति ऐसे था। पुत्रियों को पढ़ने के लिये उन्होंने कहा थाः- निम्दा सूचक श्लोक रच सकते हैं उसी प्रकार
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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