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है लेकिन वही एकमात्र कारण नहीं है। बौद्धिक अनेकान्त विचार-दृष्टि विभिन्न धर्म सम्प्रदायों भिन्नता और देशकाल-गत तथ्य भी इसके कारण की समाप्ति के द्वारा एकता का प्रयास नहीं करती रहे हैं और इसके अतिरिक्त पूर्व प्रचलित है क्योंकि वैयक्तिक रुचि भेद एवं क्षमता भेद तथा परम्पराओं में आई हुई विकृतियों के संशोधन के देशकाल-गत भिन्नताओं के होते हुए विभिन्न धर्म लिए भी सम्प्रदाय बने।" उनके अनुसार सम्प्रदाय एवं विचार सम्प्रदायों की उपस्थिति अपरिहार्य बनने के निम्न कारण हो सकते हैं :
है । एक धर्म या एक सम्प्रदाय का नारा असंगत एवं
अव्यावहारिक ही नहीं अपितु अशान्ति और संघर्ष (1) ईर्ष्या के कारण, (2) किसी व्यक्ति का कारण भी है । अनेकान्त, विभिन्न धर्म सम्प्रकी प्रसिद्धि की लिप्सा के कारण, (3) किसी दायों की समाप्ति का प्रयास नहीं होकर उन्हें एक वैचारिक मतभेद (मताग्रह) के कारण, (४) व्यापक पूर्णता में सुसंगत रूप से संयोजित करने किसी आचार सम्बन्धी नियमोपनियम में भेद के का प्रयास हो सकता है। लेकिन इसके लिए कारण, (५) किसी व्यक्ति या पूर्व सम्प्रदाय के प्राथमिक आवश्यकता है धार्मिक सहिष्णुता और द्वारा अपमान या खींचातान होने के कारण, (६) सर्व धर्म समभाव की । किसी विशेष सत्य को प्राप्त करने की दृष्टि से एवं
अनेकान्त के समर्थक जैनाचार्यों ने इसी धार्मिक (७) किसी साम्प्रदायिक परम्परा या क्रिया में द्रव्य, क्षेत्र एवं काल के अनुसार संशोधन या
सहिष्णुता का परिचय दिया है । आचार्य हरिभद्र परिवर्तन करने की दृष्टि से ।। उपरोक्त कारणों
की धार्मिक सहिष्णुता तो सर्व विदित ही है । अपने में अन्तिम दो को छोड़कर शेष सभी कारणों से
ग्रन्थ शास्त्रवार्ता समुच्चय में उन्होंने बुद्ध के अनाउत्पन्न सम्प्रदाय, अाग्रह, आर्थिक असहिष्णुता और
त्मवाद और न्याय दर्शन के ईश्वर कर्तृत्ववाद, साम्प्रदायिक कटुता को जन्म देते हैं।
वेदान्त के सर्वात्मवाद (ब्रह्मवाद) में भी संगति
दिखाने का प्रयास किया। उन्हीं के ग्रन्थ षड्दर्शन विश्व इतिहास का अध्येता इसे भलीभांति समुच्चय की टीका में प्राचार्य मणिभद्र लिखते हैं: मानता है कि धार्मिक असहिष्णुता ने विश्व में पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । जघन्य दुष्कृत्य कराये हैं । आश्चर्य तो यह है कि इस युक्तिमट्टचनं यस्य, तस्य कार्य : परिग्रह : ॥ दमन, अत्याचार, नृशंसता और रक्त प्लावन को
.. मुझे न तो महावीर के प्रति पक्षपात है और धर्म का बाना पहनाया गया। शान्ति प्रदाता धर्म
__ न कपिलादि मुनिगणों के प्रति द्वेष है। जो भी ही प्रशान्ति का कारण बना। आज के वैज्ञानिक वचन तर्कसंगत हो उसे ग्रहण करना चाहिए । युग में धार्मिक अनास्था का मुख्य कारण उपरोक्त
___इसी प्रकार प्राचार्य हेमचन्द्र ने शिव-प्रतिमा भी है । यद्यपि विभिन्न मतों, पंथों और वादों में
को प्रणाम करते समय सर्व देव समभाव का बाह्य भिन्नता परिलक्षित होती है किन्तु यदि
परिचय देते हुए कहा थाहमारी दृष्टि व्यापक और अनाग्रही हो तो इसमें भी एकता और समन्वय के सूत्र परिलक्षित हो भवबीजांकुर जनना, रागाद्या क्षयमुपागता यस्य । सकते हैं।
ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो, जिनो वा नमस्तस्मै ।
1. देखिये--मुनि नेमीचन्दजी का लेख
1-58
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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