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"सदसन्नित्यानित्यादिसर्वर्थकान्त प्रतिक्षेप लक्षरणोऽनेकान्तः "
प्रष्ट श. (अष्ट स) पृ. 286 जैन न्याय पृ. 326 " प्रवरोप्पर सावेक्ख गय विसयं ग्रह पमारण विसयं वा ।
ते सावेक्खं तत्त रिणखेक्खं तारण विवरीयं । "
नय चक्र
1-70
विश्वशांति का चक्र चतुर्दिश अखिल विश्व में
ग्राम-ग्राम में, नगर-नगर चला एक संदेश सुनाने'जिओ और सबको जीने दो ।' सब का मन है सबका तन है सब को धन की अभिलाषा है किन्तु किसी का मन न दुखाओ किन्तु किसी का तन न दुखाओ पर धन की अभिलाषा छोड़ो सबको धर्मामृत पीने दो । जब जब दुनियां के नर-नारी मानवता से विमुख हो गये
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11 "अनेकान्तात्मदृष्टिस्ते
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महावीर का जीवन-दर्शन
श्री नेमीचन्द्र गोंदवाले शिवपुरी
“स्याद्वादः सकलादेशो नयो विकल संकथा लघीयस्त्रय 62
सती
शून्यौ विपर्ययः ।"
स्वयंभू स्तोत्र श्लोक 98
दृष्टव्य :- तत्त्वार्थंश्लोकवार्तिक पृ. 137 जैन न्याय 322
कोटि-कोटि भौतिक जीवन में मानव का विश्वास मर गया तब तब पुण्य- पुरुष धरती पर महावीर बनकर आये थे आज उन्हीं के पथदर्शन का जीवन मात्र अधिकारी बनकर चल कर पावन - सत्य मार्ग पर परम हिंसा - ज्योति जलती अनुशासित जीवन अनुप्राणित यही धर्म का परमाभूषण महावीर का, वर्धमान का परमपूज्य जीवन-दर्शन है ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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