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सुकुमारी एवं अबला कहकर उसके साथ सहानुभूति ही मानव समाज में जीवित रह सकता है, उत्कर्ष तो दिखाई गई किन्तु समाज में उसकी उन्नति के को प्राप्त कर सकता है। महावीर का दिव्य के मार्ग अवरुद्ध कर दिए गए । भगवान् सन्देश सम्प्रदाय या जाति विशेष के लिए न होकर महावीर ने नारी जाति को समान महत्व प्रदान समग्र मानव जाति के लिए है । उनका दिव्य बोध किया और उसके उत्थान का मार्ग खोल दिया। सामाजिक या तात्कालिक नहीं वरन् शाश्वत् है । नारी तो नर का नेतृत्व करने के गुणों से सम्पन्न यह सदैव अम्लान रहने वाला ऐसा चिर युवा सत्य है, उसे कब तक दबा कर रखा जा सकता था। है जो देशकाल की क्षुद्र सीमाओं को लांधकर दूसरों को दबाने वाले को कभी पूर्ण शांति प्राप्त मानव जाति को जीवन के सभी क्षेत्रों में सुख-शांति नहीं होती। इस प्रकार नर-नारी की समानता एवं तथा आनन्द की पवित्र धारा से प्राप्लावित करता नारी के उत्थान का उपदेश देकर महावीर स्वामी रहा है, और भविष्य में भी करता रहेगा। उनके ने गृह जीवन की शांति का अनुपम अादर्श प्रस्तुत उपदेशों में निहित सिद्धान्तों तथा आदर्शों के निर्मल किया। उन्होंने नारी की प्राध्यात्मिक साधना का प्रकाश में युग-युग तक मानव प्रात्मबोध प्राप्त करता मार्ग प्रशस्त किया और साधु के साथ ही साध्वी रहेगा । आत्मबोध से ही प्रात्मशान्ति की प्राप्ति तथा श्रावक के साथ श्राविका इस प्रकार चतुर्विध संभव है । आप जानते ही हैं कि आज के मानव का संघ की स्थापना की।
जीवन समस्याओं से घिरा हुआ, चिन्ता से ग्रस्त
और अशान्ति से परिपूर्ण है । ऐसी स्थिति में भगवान् महावीर के उपदेशों में मानव जीवन भगवान् महावीर के उपदेश हमें जीवन के परम को सन्तुलित बनाने के लिए अनेक सिद्धान्तों का लक्ष्य की ओर सानग्द अग्रसर होने का पुरुषार्थ निरूपण किया गया है । इन सिद्धान्तों को जीवन करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं और सदा सर्वदा में उतार कर मानव सुखी बन सकता है एवं शांति करते रहेंगे क्योंकि उन्होंने मानव जीवन की शाश्वत् से जीवित रह सकता है। परस्पर उपकार करके समस्याओं के शाश्वत् समाधान प्रस्तुत किये है ।
"युद्ध यदि करना ही है तो अपनी प्रात्मा के शत्रुनों के साथ करो। बाह्य शत्रुओं के साथ युद्ध करने से क्या लाभ ? प्रात्मा के द्वारा अपनी प्रात्मा को जीतने वाला ही पूर्ण सुखी होता है।"
-भगवान् महावीर
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महावीर जयन्ती स्मारिका. 76
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