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ईस प्रकार के विवेकीकृत ज्ञान से न केवल व्यक्ति ताकि जन-शक्ति विशेषकर युवा शक्ति पथभ्रष्ट न की उन्नति हो सकती है अपितु समाज व राष्ट्र की हो सके। छात्र अपने गंतव्य के प्रति आश्वस्त भी प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। यदि होकर मात्र नारे-बाजी पर विश्वास न करके क्रियाव्यक्ति केवल मात्र अपने मत का ही आग्रह करता त्मक शक्ति का परिचय दे सके । इस उद्देश्य-प्राप्ति रहेगा तो अवश्य ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विरोध हेतु शिक्षकों को महती भूमिका अदा करनी होगी। की ही अभिवृद्धि होती जायेगी जिससे व्यक्ति प्रशांत उन्हें छात्र-वर्ग को सभी मतों को समझाकर समन्वय व अनैतिक पथगामी हो जायेगा । कारण कि प्रक्रिया से परिचय करना होगा तभी छात्र वर्ग विरोधी के प्रति व्यक्ति का दृष्टिकोण हिंसा, कटुता में व्याप्त आक्रोश व कुठा समाप्त हो सकेगी और प्रतिकार भावना वाला साधारणतः हो जाता है। वे वैचारिक धरातल पर सहिष्णुता, सह-अस्तित्व ये कुविचार व्यक्ति की नैतिकता का अवमूल्यन कर व समरसता को अंगीकार कर वसुधैव कुटुम्बकम् देते हैं, ज्ञान शक्ति को कुठित कर देते हैं अतः के मसीहा बन सकेंगे: और राष्ट्रोन्नति में अपनी आवश्यकता है कि संत्रस्त एवं कुठाग्रस्त जन-शक्ति भूमि क्रियात्मक रूप से निर्वाह करने में बहुमूल्य को विवकीकृत ज्ञान-दीप से आलोकित किया जाये योगदान दे सकेंगे।
१ "अनन्तधर्मात्मकस्य वस्तुनो यदेकेन नित्यवादिना, 5 अ. भगवती सूत्र श 18, उ 6 अनित्यत्ववादिना वा धर्मेण सावधारणं नयनं- ब. “दिट्ठीय दो गया खलु ववहारो निच्छरो प्ररूपणमसौ नयः ॥"
णेव" आवश्यक नियुक्ति 815 विशेषावश्यकभाष्य वृत्ति
___ (प्राचार्य भद्रबाहु) 2 अ “एकदेश विशिष्टो यो नयस्य विषयो मतः"
स. “ववहारणयो भासदि जीवो देहो य हवदि न्यायावतार श्लोक 29
खलु इक्को ब. नय शब्द की निरुक्ति:
ण दु णिच्छयस्स जीवो देहो य कदापि नीयते परिच्छिद्यते एकदेशविशिष्टोऽर्थः
एकट्ठो" . अनेन इति नयः
समयसार 27 तथा 8 वीं गाथा स्याद्वाद मंजरी पृ० 159
दृष्टव्य :-तत्वार्थ वार्तिक 1/336 सयं सयं पसं संता गरहंता परं वयः 3 स्थानांग सूत्र स्था 7, अनुयोगद्वार सूत्र
जे उ तत्य विउस्सन्ति संसारं ते विउस्सिया"
सूत्र कृतांग 1/1/2/23 4 अ नयकणिका तत्वार्थ राज. वा. 1/33, 34, 35 7 ...सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत्"
प्राप्तमीमांसा श्लोक 108 ब. प्रमाणनयतत्वावलोक (धारा संस्करण) 7/13, 32, 36 8 अ. "अनेकान्तात्मकार्थकथनं स्याद्वादः"
लघीयस्त्रय विवृति स. लधीयस्त्रय 3, 6, 70-71
न्यायकुमुदचन्द्र पृ० 686 द. द्रव्यानुयोग तर्कणा
ब. दृष्टव्य :-जैन न्याय पृ० 299 महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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