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संसार परिभ्रमण के कारण रागादि जिसके की समाप्ति के लिए प्रयत्नशील है। विश्व के क्षय हो चुके हैं, उसे मैं प्रणाम करता हूं चाहे वह राष्ट्र खेमों में बटे हुए हैं और प्रत्येक खेमे का ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव हो या जिन हो। अग्रणी राष्ट्र अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के हेतु दूसरे
के विनाश में तत्पर है । मुख्य बात यह है कि आज उपाध्याय यशोविजय जी लिखते हैं- का राजनैतिक संघर्ष आर्थिक हितों का संघर्ष न
"सच्चा अनेकान्तवादी किसी दर्शन से द्वष होकर वैचारिकता का संघर्ष है। आज अमेरिका नहीं करता । वह सम्पूर्ण दृष्टिकोण (दर्शनों) को और रूस अपनी वैचारिक प्रमुखता के प्रभाव को इस प्रकार वात्सल्य दृष्टि से देखता है जैसे कोई बढ़ाने के लिए ही प्रतिस्पर्धा में लगे हुए हैं। एक पिता अपने पूत्रों को। क्योंकि अनेकान्तवादी की दूसरे को नाम शेष करने की उनकी यह महत्वान्यूनाधिक बुद्धि नहीं हो सकती । वास्तव में सच्चा कांक्षा कहीं मानव जाति को ही नाम-शेष न शास्त्रज्ञ कहे जाने का अधिकारी वही है जो कर दे। स्याद्वाद का पालम्बन लेकर सम्पूर्ण दर्शनों में समान भाव रखता है। माध्यस्थ भाव ही शास्त्रों आज के राजनैतिक जीवन में अनेकान्त के दो का गूढ़ रहस्य है, यही धर्मवाद है । माध्यस्थ भाव व्यावहारिक फलित वैचारिक सहिष्णुता और रहने पर शास्त्र के एक पद का ज्ञान भी सफल
समन्वय अत्यन्त उपादेय है। मानव जाति ने है, अन्यथा करोड़ों शास्त्रों का ज्ञान भी वृथा राजनैतिक जगत् में राजतन्त्र से प्रजातन्त्र तक की है ।" एक सच्चा जैन सभी धर्मों एवं दर्शनों।
जो लम्बी यात्रा तय की है उसकी सार्थकता के प्रति सहिष्णु होता है। वह सभी में सत्य का अनेकान्त दृष्टि को अपनाने में ही है। विरोधी दर्शन करता है । परमयोगी जैन सन्त मानन्दधनजी
पक्ष के द्वारा की जाने वाली अालोचना के प्रति लिखते हैं :
सहिष्णु होकर उसके द्वारा अपने दोषों को समझना षट् दरसण जिन अंग भणीजे, न्याय षडंग जो साधे रे, और उन्हें दूर करने का प्रयास करना, अाज के नमि जिनवरना चरण उपासक, षटदर्शन आराधे रे । राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
विपक्ष की धारणामों में भी सत्यता हो सकती राजनैतिक सहिष्णुता के हेतु जैनधर्म की अनेकान्त है और सबल विरोधी दल की उपस्थिति से हमें दृष्टि का उपयोग
अपने दोषों के निराकरण का अच्छा अवसर आज का राजनैतिक.. जगत् भी वैचारिक मिलता है। इस विचार-दृष्टि और सहिष्णु भावना संकुलता से परिपूर्ण है। पूजीवाद, समाजवाद, में ही प्रजातन्त्र का भविष्य उज्ज्वल रह सकता साम्यवाद, फासिस्टवाद, नाजीवाद, आदि अनेक है। राजनैतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातन्त्र राजनैतिक विचारधाराएँ तथा राजतन्त्र, (पार्लियामेन्टरी डेमोक्रसी) वस्तुतः राजनैतिक प्रजातन्त्र, कुलतन्त्र, अधिनायकतन्त्र आदि अनेकान्तवाद है । इस परम्परा में बहुमत दल द्वारा अनेकानेक शासन प्रणालियां वर्तमान में प्रचलित गठित सरकार अल्प मत दल को अपने विचार हैं । मात्र इतना ही नहीं उनमें से प्रत्येक एक दूसरे प्रस्तुत करने का अधिकार मान्य करती है और
1. आध्यात्मसार 69-73 2. उत्तराध्ययन सूत्र 3218
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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