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जीवन की तथाकथित सम्पूर्ण सुख-सुविधामों पर मनगिनत ज्ञान विज्ञान के. मंदिरों के होते हुए भी आज मानव मानव के निकट होने की अपेक्षा मानव से दूर हटता जा रहा है उसकी बीच की खाई चौड़ी और चौड़ी होती जा रही है। मानव स्वयं अपने माप में भी प्रशान्त और दु:खी है। विज्ञान की उन्नति ने उसे शान्ति प्रदान करने की अपेक्षा उसके संत्रास को बढ़ाया ही है। मानव का देवत्व की भोर बढ़ना तो दूर वह मानव भी नहीं रहा है, पशु बनता जा रहा है। आज मानव के सामने समस्यामों के समाधान हेतु केवल दो विकल्प शेष हैं-एक अपने प्रकृत ग्रादिम जीवन की और लौटना तथा दूसरा नये मानव का सुजन । लेखक ने प्रथम विकल्प को संभव और वरेण्य न मानते हुए इस पर विचार किया है कि नये आध्यात्मिक मानव के सृजम में महावीर के सिद्धान्त क्या मांर्ग-दर्शन कर सकते हैं।
प्र. सम्पादक
*महावीर के सिद्धान्त, युगीन सन्दर्भ में
.डा० सागरमल जैन हमीदिया महाविद्यालय, भोपाल
आधुनिक मानस अशांत, विक्षुब्ध एवं तनाव- दूरी अाज ज्यादा हो गयी है । सुरक्षा के साधनों पूर्ण स्थिति में है। बौद्धिक विकास से प्राप्त की यह बहुलता आज भी उसके मन में अभय का विशाल ज्ञान राशि और वैज्ञानिक तकनीक से प्राप्त विकास नहीं कर पायी है, आज भी वह उतना ही भौतिक सुख-सुविधा एवं आर्थिक समृद्धि मनुष्य की आशंकित, आतंकित और आक्रामक है, जितना प्राध्यात्मिक, मानसिक, एवं सामाजिक विपन्नता को आदिम युग में रहा होगा । मात्र इतना ही नहीं, आज दूर नहीं कर पायी है । ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देने विध्वंसकारी शस्त्रों के निर्माण के साथ उसकी यह वाले सहस्राधिक विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों आक्रामक वृत्ति अधिक विनाशकारी बन गई है और के होते हुए भी आज का शिक्षित मानव अपनी वह शस्त्र निर्माण की इस दौड़ में सम्पूर्ण मानवस्वार्थपरता और योग-लोलुपता पर विवेक एवं जाति की अन्त्येष्टि की सामग्री तैयार कर रहा संयम का अंकुश नहीं लगा पाया है । भौतिक है। आर्थिक सम्पन्नता की इस अवस्था में भी सुख-सुविधाओं का यह अम्बार आज भी उसके मनुष्य उतना ही अधिक अर्थ-लोलुप है, जितना कि मानस को सन्तुष्ट नहीं कर सका है। आवागमन वह पहले कभी रहा होगा, आज मनुष्य की इस के सुलभ साधनों ने विश्व की दूरी को कम कर अर्थ-लोलुपता ने मानव जाति को शोषक और दिया है, किन्तु मनुष्य-मनुष्य के बीच हृदय की शोषित के दो ऐसे वर्गों में बांट दिया, जो एक
रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर के जैनधर्म एवं दर्शन के सेमीनार में प्रस्तुत निबन्ध
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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