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कल्याण एवं अपने जीवन में शुचिता लाने के लिये नहीं । पहले उनके अनुयायी होने का दावा करने क्या और कितना उपयोग किया। क्या मान्यता भेदों वाले स्वयं हम उनके बताये मार्ग पर चलेंगे तभी हम को हम घटा पाये है । क्या हम तीर्थों के झगड़े समाप्त अन्यों से कहने के अधिकारी होंगे। गांधी जी कह कर पाये हैं । क्या अपरिग्रह और अनेकान्तवाद गये हैं कि "मण भर उपदेश से कण भर आचरण को ग्रहण कर अपने निजी जीवन में शुचिता ला कहीं अधिक होता है।" याद रखिये दिनकर पाये हैं ? क्या अपनी संस्था व्यवस्थाओं को सुधार सोनवलकर की इन पंक्तियों को :-- पाये हैं । ऐसा कर समाज और देश की फिजा में
समय कुछ अपेक्षित परिवर्तन ला पाये हैं ? केवल महावीर सब को पीछे छोड़ता हुआ महिमा का राग अलापने और मौके का लाभ उठाने बढ़ जायेगा आगे वाले नेता तथा अधिकारियों के प्रशंसात्मक भाषण जिसमें हिम्मत हो दमखम हो करा देने मात्र से तो वाञ्छित फल मिलने वाला
वह समय के साथ भागे ।
जय महावीर ( रचयिता-श्री मोतीलाल सुराना, इन्दौर ) जन्मते ही वीरता का भास था जिसने जताया । यज्ञ की पाहूतियों से मूक पशुओं को बचाया ।। मनन चिंतन त्याग तप से प्रात्मा को था उठाया। हार मानी कर्म-शत्रु वीर ने जब ध्यान ध्याया ।। वीतरागी ने सन्मति, मार्ग तिरने का बताया । रतन न रतन है अमोलक सफल करना है सिखाया ।।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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