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अभिव्यक्ति, वर्गमूल, वृत्त, त्रिभुज आदि गणित के चाहिए । विज्ञान ने आज दिन तक आकाश की अनेक विषयों का उल्लेख प्राप्त होता है। जैना- आण्विकता का प्रत्यय नहीं किया। परन्तु जैनचार्यों के ग्रन्थों में गणित के अनेक ऐसे मौलिक दर्शन आकाश को अनन्तप्रदेश मानता है। आकाश सिद्धान्त निबद्ध हैं, जो भारतीय गणित में अन्यत्र के विभाग के सम्बन्ध में जैनदृष्टि का वर्तमान नहीं मिलते।
विज्ञान से समर्थन होता है। आकाश को सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड के रूप में माना गया है। लोकाकाश और जैन वाङ्मय में सम्यक अध्ययन से यह स्पष्ट अलोकाकाश का वर्णन जैनों का मौलिक विचार हो चुका है कि आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में भ० है। उनके लक्षणों का तुलनात्मक विचार करने महावीर की विरासत अन्यतम है । सर्वप्रथम पर जैन मान्यता सत्य प्रतीत होती है। वैज्ञानिकों भारतीय प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदीशचन्द्र का अणु प्राज खण्डित हो चुका है। यथार्थ में वसु के साथ यह प्रमाणित हुआ था कि पेड़, पौधे अणु के प्रदेश नहीं होते। प्रदेश की मान्यता जैनव वनस्पति में भी प्राण होते हैं। जैन ग्रन्थों का दर्शन में ही पायी जाती है। बिमा इसके सूक्ष्मतम तो यह प्रारम्भिक सूत्रवाक्य पाया जाता है कि विज्ञान को नहीं समझाया जा सकता। लारेन्स पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति में प्राण होस्टमेन का कथन स्पष्ट है कि जैनों के अनुसार पाए जाते हैं । ये सभी एकेन्द्रिय जीव हैं। प्राणों उन असंख्य अन्तवान छोटे-छोटे कोषों को प्रदेश की संख्या भी जैन वनस्पति शास्त्र तथा जीव- कहते हैं जो किसी भी प्रकार विभक्त न किए जा विज्ञान की अपनी मौलिक देन है। इसी प्रकार से सकते हों । द्रव्य संग्रह (गाथा 27) में यही पानी की एक बूद में सैकड़ों जीव पाए जाते हैं। परिभाषा निरूपित की गई है । सर पी० सी० राय इसी प्रकार से रासायनिक एवं भौतिक सिद्धान्त ने भी जैन सिद्धान्तों की गरिमा का उल्लेख किया विषयक अनेक मौलिकता जैनदर्शन की अपनी है । जैन दर्शन में कार्मणवर्गणाओं का जो सूक्ष्मदेन है । इस सूक्ष्म तत्त्वदर्शन तथा पदार्थविद्या के तम आविष्कार वर्णित है, वहां तक अभी पाश्चात्य पीछे करोड़ों वर्षों की अनुभूत परम्परा तथा विज्ञान की पहुँच नहीं है। इस दृष्टि से अभी भी सिद्धान्तों को निरूपित करने वाली व्यवस्थित आविष्कार एवं अनुसन्धान के लिए सत्य-दर्शन का भाषा-परम्परा है। यही कारण है कि अधुनातन एक वृहत क्षेत्र अवशिष्ट है । जैन दर्शन की उन वैज्ञानिक मुक्त कण्ठ से जैन सिद्धान्तों की प्रशंसा सभी वैज्ञानिक उपलब्धियों का उल्लेख करना इस कर रहे हैं। 1956 में नोबल पुरस्कार-विजेता छोटे से लेख में सम्भव नहीं है। संक्षेप में इतना रिचर्ड फिनमन के शब्दों में जैन सिद्धान्तों की ही समझ लेना चाहिये कि क्या भौतिक विज्ञान, यह पुनः महान विजय है, जिस पर हमें गर्व होना क्या रसायन शास्त्र, क्या वनस्पति शास्त्र, क्या
1. डॉ. नेमीचन्द्र शास्त्री : भारतीय ज्योतिष, पृ. 72 2. प्रो० जी० आर० जैन : कॉस्मालॉजी अोल्ड एण्ड न्यू, पृ० 3 3. डॉ० जे० सी सिकदार : जैन कान्सेप्ट आव स्पेस, पृ० 160-161, "कन्ट्रीव्यूशन प्राव जैनिज्म
टु इण्डियन कल्चर" 4. कॉसमालॉजी अोल्ड एण्ड न्यू, पृ० 3 5. पी० सी० राय : हिन्दू केमिस्ट्री, भाग 2
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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