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गणित, ज्योतिष, मनोविज्ञान, पदार्थविद्या आदि 'नन्नूर' (नवनन्दी मुनि) संस्कृत का 'पंचगन्धिव्यासभी विषयों में जैन प्राचार्यों की मौलिक एवं करण', संस्कृत में ही 'कौमारव्याकरण' एवं महान देन हैं।
शाकटायन कृत 'सुवन्थ संग्रह' आदि ऐसी अज्ञात
रचनाएं हैं, जिनका नाम प्रथमबार (कौमारव्याकेवल अध्यात्म और विज्ञान के क्षेत्र में ही करण को छोड़ कर) पढ़ने को मिलता है। अपनहीं, सभी प्रमुख भाषाओं तथा प्रान्तीय बोलियों भ्रश की अव तक लगभग पांच सौ रचनाएं में भी विपुल जैन साहित्य मिलता है। अधिकतर उपलब्ध हो चुकी हैं। सम्प्रति 'अंजनाचरित' आदि जैन साहित्य अब भी हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप में
कुछ अन्य रचनाओं का भी पता लगा है, जो अभी उत्तर भारत से ले कर दक्षिण भारत तक में बड़े- तक अज्ञात हैं। केवल विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं बड़े मन्दिरों तथा मठों में ताड़पत्रों और कागजों और उनके साहित्य के उन्नयन में ही नहीं, इतिहास पर लिखित ग्रन्थों के रूप में उपलब्ध होता है। वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला तथा संगीत आदि केवल प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश में ही नहीं, की समृद्धि में भी जैनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा तमिल और मलयालम में भी प्रचुर जैन साहित्य है। पी० सी० मित्रा ने निःसंकोच भाव से लिखा मिलता है। कन्नड़ का प्राचीनतम तथा प्राचीन है कि निश्चित रूप से प्रागैतिहासिक गुफाओं की साहित्य जैन साहित्य ही उपलब्ध होता है। कन्नड़ खोजों से यह तथ्य प्रकट हया है कि दस हजार साहित्य के रत्नत्रय के रूप में पम्प, पोन्न और वर्ष पुरानी गुफानों में कुछ न्युलिथिक प्रागैतिहासिक रन्न अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । महाकवि पम्प की चित्रकला से समद्ध हैं; जैसे कि रायगढ़ क्षेत्र में रामायण भारतीय साहित्य की विशिष्ट रचना सिंगारपुर है, जो निश्चित रूप से बिना किसी मानी जाती है । कन्नड़ में व्याकरण, पुराण, काव्य
संशय के जैनकला से प्रभावापन्न आदिमयुगीन है। सिद्धान्त आदि अनेक विषयों के ग्रन्थ जैन प्राचार्यों
भारतीय कला का क्रमबद्ध इतिहास मौर्यकाल से एवं साहित्यकारों के रचे हुए मिलते हैं। प्राकृत प्राप्त होता है। सम्राट अशोक का उत्तराधिकारी और अपभ्रश का अधिकतर साहित्य जैन साहित्य सम्प्रति जैनधर्मावलम्बी था। बौद्ध ग्रन्थों में जो है। संस्कृत में भी लगभग पांच सौ लेखकों की
स्थान अशोक को दिया गया है, वहीं जैन ग्रन्थों लगभग दो हजार जैन रचनाएं उपलब्ध होती हैं ।
में सम्प्रति को दिया गया है। मौर्यकालीन जैन अब भी अनेक अज्ञात रचनाएं जैन भण्डारों की
प्रतिमाएं लोहानीपुर आदि स्थानों से प्राप्त हुई शोभा बढ़ा रही हैं । यह साहित्य बहुत कम प्रकाश
हैं । पार्श्वनाथ की एक कांस्यप्रतिमा जो कायोत्सर्ग में आया है। श्री दि० जैन मठ, चित्तामूठ (साउथ
आसन में है, बम्बई संग्रहालय में सुरक्षित हैं । आरकाड) के शास्त्र भण्डार में प्राकृत भाषा में
श्वेताम्बर आलेखों से पता चलता है कि भगवान् निबद्ध पदार्थसार (माघनन्दि) लोकचूड़ामणि
महावीर के समय में ही उनकी मूर्ति का निर्माण (वीरनन्दि), रयणसार (वीरनन्दि), त्रिभंगीरचना
होने लगा था। यूनान के राजा डेमेट्रियस तीर्थङ्कर प्रादि ऐसे ग्रन्थ हैं, जिनके नाम ही जैन विद्वानों के महावीर के अनन्य भक्त थे। भगवान महावीर की लिए नए हैं। इसी प्रकार से तमिल व्याकरण यह परम्परा आज तक सुरक्षित है। .
1. जर्नल आव एशिया, 10,2 और 11,1 द्रष्टव्य हैं। 2. "श्रमण" के महावीर-निर्वाण-अंक, पृ० 39 से उद्धृत 3. ल्युडर्स : डी० आर० भण्डारकर वाल्यूम, कलकत्ता, पृ० 280-289
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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