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भगवान् महावीर मे जिस धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया उसमें उनकी जीवनदृष्टि क्या थी, वह कितना वैज्ञानिक धरातल पर खरा था, वर्तमान विज्ञान से उसका समन्वय कहां तक होता है, इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में जैनों की क्या देन है भादि विषयों पर विद्वान् लेखक ने अपनी इस रचना में तर्क एवं उदाहरणपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। बर्तमान युग में ऐसे लेखों की उपादेयता असंदिग्ध है ।
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यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि भगवान् महावीर ने किसी नवीन परम्परा को जन्म नहीं दिया था । अनादि परम्परित प्रस्थापित मूल्यों एवं सिद्धान्तों को ही जीवन्त परम्परा के रूप में प्रवर्तित करने वाले वर्द्धमान महावीर की गौरव गरिमा उनकी संरचना में नहीं, किन्तु प्रयोगों में परिलक्षित होती है । महावीर ने किसी नये मार्ग या प्रस्थान का प्रवर्तन नहीं किया था । उनके पूर्व काल - धारा की प्रवर्तमान चतुर्थं विकास - श्रृंखला में तेईस तीथंङ्कर हो चुके थे । उन सबका सुदीर्घ इतिहास महावीर के साथ वैसे ही संयुक्त है, जैसे कि तीर्थर महावीर के साथ जैनधर्म का इतिहास सम्बद्ध है । परम्परा में विराचरित अनुभवों तथा विशद चिन्तन का सार समाहित होता है । अतः भावी पीढ़ियां उनसे गतिमान हो कर विकसित होती हैं । मानवीय संक्रान्त चेतना का पौराणिक प्रतिबिम्ब युग-युगीन परतों में भी स्पष्ट झलकता लक्षित होता है । इसलिए पुराण कहे जाने वाले शास्त्र ही भारतीय इतिहास की एक मुख्य तथा सुसम्बद्ध कड़ी मानी जाती है । अब इतिहासकार भी पौराfur अनुश्रुतियों के प्रकाश में तथ्यों का अनुसंधान करने लगे हैं । काश ! हमारे बीच पुराण- साहित्य न होता, तो प्राधुनिक इतिहासातीत परम्परा का
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
भगवान् महावीर : परम्परा और प्रयोग
डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री, नीमच
प्र० सम्पादक
हम सन्धान नहीं कर पाते और हमारा इतिहास अधूरा ही रहता । यह सत्य है कि हमारे वाङ्मय का अधिकांश भाग विलुप्त हो गया है, किन्तु जो अवशिष्ट है उससे उसकी प्रामाणिकता तथा ऐतिहासिक इतिवृत्तों का बहुत कुछ परिचय मिल जाता है । वास्तव में पुराणशास्त्रों में इतिहास, कला, साहित्य, संगीत, अध्यात्म तथा धार्मिक रीतिनीतियों का सुन्दर संकलित रूप वरिणत किया जाता है । लोग सरलता से रुचिपूर्वक पढ़ कर समझा सकते हैं । श्रतएव पुराणों का विशेष महत्व है । श्राज कुछ लोग यह कहने लगे हैं कि महावीर के जीवन में कोई घटनायें नहीं घटी थीं और जो घटी थीं, उन में महावीर को ढूंढना व्यर्थ है । किन्तु औसत आदमी के सामने घटनाएं ही होती हैं । यदि वह महावीर को घटनाओं के माध्यम से नहीं समझना चाहेगा, तो क्यों तीर्थङ्करों के जीवनचरित लिखे गए और क्यों घटनाओं में उनकी अतिशयता का वर्णन किया गया ? उन घटनाओं को हम कपोल कल्पित भी नहीं मान सकते ? फिर, साधारण व्यक्ति के जीवन से महापुरुष के जीवन में कोई न कोई विशेषता अवश्य होती है, जिसे समझने के लिए ही महापुरुषों के जीवन-चरित पढ़े जाते हैं । यह बात अवश्य है कि उन घटनाओं में श्रौचित्य
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