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(2) धर्मनिरपेक्षता-धर्म निरपेक्षता का ग्रह तथा भोगों से विरक्ति के द्वारा ही सुख प्राप्ति अर्थ धर्म शून्यता नहीं है। तब तो जंगल न्याय सम्भव है। मांग कम होने पर महँगाई स्वयं हो जाएगा। वीर उपदिष्ट स्याद्वाद के द्वारा ही घटेगी। धर्मनिरपेक्षता तथा धार्मिक सहिष्णुता एवम् सहअस्तित्व की भावना का प्रसार हो सकता है। (4) भ्रष्टाचार तथा स्वार्थपरता-पंचाणुव्रतों
के पालन तथा समत्व भावना के विकसित (3) महंगाई तथा भोग वादिता-जब होने पर भ्रष्टाचार यादि स्वयं तिरोहित हो उत्पादन कम है और उपभोक्ता अधिक तो अपरि- जायेंगे ।
वीर-अवतार
फंसी हुई थी जब मानवता दानवता के दृढ़ चंगुल में ।
चुभे हुये थे कांटे जन की नस नस में अंगुल अंगुल में ।। रक्त विहीन नसें थीं सबकी पर प्रांखों में थी अरुणाई।
कंकालों में खेल रही थी संज्ञाहीन शुष्क तरुणाई ।। पृथ्वी के वक्षःस्थल पर जब दानवता हंस नाच रही थी।
मूक प्राणियों के शोणित से जग बलिवेदी राच रही थी ।। ज्ञान दया सुख शान्ति विश्व से विदा हो चुके थे सब सारे। .
'यज्ञार्थः पशवः सृष्टा' के लगते थे जोरों से नारे ।। ऐसी विषम परिस्थितियों से व्याकुल विश्व कराह रहा था।
ऐसे जीवन से अधीर हो मरण महोषधि चाह रहा था ।। - तभी वीरवर तुमने आकर जीवन सुधा पिलाई जगको। अप्रियता सब दूर हटा कर किया प्रशस्त विश्व के मगको ।।
श्री रतनलाल गंगवाल जयपुर ( राज.)
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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