________________
* कर्म-सिद्धान्त : बिंदु में सिंधु * ११७ *
आत्मा सदा सर्वदा सर्वथा स्थिर हो जाती है। जिसकी आदि तो है, अन्त नहीं है। यानी सम्पूर्ण सिद्धि प्राप्त आत्मा यहाँ से शरीर छूटते ही लोकाग्रस्थित सिद्धशिला में जाकर स्थिर हो जाती है। उसके स्वरूप तथा विशेषताओं का सारा वर्णन आगे किया जायेगा।
मोक्ष की अवश्यम्भाविता का मूल : केवलज्ञान : क्या और कैसे-कैसे ?
मोक्ष-प्राप्ति का मूल : क्या और क्यों ? : यह विचार करना जरूरी ___ संसार में जितने भी आत्मार्थी और आध्यात्मिक साधक हैं, सभी का चरम लक्ष्य मोक्ष है। जितनी भी आध्यात्मिक साधनाएँ हैं, सभी का अभीष्ट प्रयोजन सर्वकर्मक्षयरूप मोक्ष प्राप्त करना है। उन आध्यात्मिक साधकों ने विभिन्न प्रकार से, विभिन्न उपायों से मोक्ष के उपाय भी बताये हैं। मूल प्रश्न यह है कि जैनकर्मविज्ञान मोक्ष-प्राप्ति के लिए किसको अवश्यम्भावी मूलाधार मानता है ? इसी सम्बन्ध में शास्त्रों और ग्रन्थों के आधार पर इस निबन्ध में विवेचन किया गया है, उस पर प्रत्येक मुमुक्षु को विचार करना आवश्यक है। केवलज्ञान न होने पर मोक्ष कथमपि सम्भव नहीं है
भगवतीसूत्र के आधार पर इसका समाधान यह है कि जब भी किसी जीव को मोक्ष प्राप्त होगा, तब केवलज्ञान-केवलदर्शन होने पर ही होगा, पहले नहीं। जो भी सिद्ध-बुद्ध-मुक्त-परिनिर्वाण प्राप्त हुए हैं या जिन-जिन ने समस्त दुःखों, कर्मों या जन्म-मरणों का अन्त किया है या करेंगे अथवा करते हैं, वे सब केवलज्ञान-केवलदर्शनधारी, जिन, अर्हन्त या (मोहनीय प्रमुख चार घातिकर्मों का क्षय करके) केवली होने के पश्चात् ही सिद्ध-बुद्ध-मुक्त आदि हुए हैं, होते हैं. होंगे। कोई भी छद्मस्थ मानव अनन्त अतीत में केवल संवर से, केवल ब्रह्मचर्यवास से या केवल अष्ट-प्रवचन-माता के पालन से ही सिद्ध-बुद्ध-मुक्त तथा कर्मों का, जन्म-मरण का, या दुःखों का अन्त नहीं कर सकता, चाहे वह कितना ही उच्च या दीर्घकालिक संयमी हो, परिमित या परम अवधिज्ञानी हो, ग्यारहवें गुणस्थान तक पहुँचा हुआ हो, चाहे उसी भव में मोक्ष जाने वाला हो, चरमशरीरी भी हो, किन्तु मोक्ष पाता है केवलज्ञान-दर्शन पाकर ही। छद्मस्थ और केवली में अन्तर
छद्मस्थ (जो पूर्ण ज्ञानी नहीं है) और केवली में दस बातों का अन्तर बताते हुए कहा गया है कि धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीरमुक्त जीव, परमाणु-पुद्गल, शब्द, गन्ध, वायु तथा यह 'जिन' होगा या नहीं? एवं यह सभी दुःखों का अन्त करेगा या नहीं? इन दस पदार्थों को छद्मस्थ ' समग्ररूप से नहीं जान-देख पाता, जबकि केवलज्ञानी इन्हें समग्ररूप से जान-देख पाते हैं। यह भी बताया गया है-अतीन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञानी इन्द्रियों से नहीं जानते-देखते, क्योंकि उनका ज्ञान, दर्शन पूर्णतया निरावरण, निराबाध, अप्रतिहत और आत्म-प्रत्यक्ष होता है। केवली में दस अनुत्तरगत विशेषताएँ
स्थानांगसूत्र में केवलज्ञानी परमात्मा में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य, क्षान्ति (क्षमा), मुक्ति (निर्लोभता), आर्जव, मार्दव और लाघव; ये दस बातें अनुत्तर होती हैं, उनकी समानता संसार का कोई भी छद्मस्थ नहीं कर सकता। . केवली का पाँच कारणों से केवलज्ञान-दर्शन नहीं रुकता तथा अन्य पाँच विशेषताएँ
इसी प्रकार स्थानांगसूत्र में यह भी बताया है कि पाँच कारणों से केवली को उत्पन्न होता हुआ केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राथमिक क्षणों में स्तम्भित नहीं होता; जबकि छद्मस्थ साधक इन कारणों के उपस्थित होने पर विस्मित, विचलित और (लक्ष्य से) विस्मृत हो जाता है। इसके अतिरिक्त पाँच कारणों से केवली उदयागत्त परीपहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से अविचलभाव से सहते हैं, क्षान्ति रखते हैं, तितिक्षा रखते हैं, उनसे प्रभावित नहीं होते।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org