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२२० * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
अघातिकर्मों से मुक्त होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त' परमात्मा हो गए। अतः शक्ति का नियोजन पर-भावों और विभावों में भी हो सकता है और स्वभाव एवं स्व-गुणों में भी । अन्तर है सिर्फ नियोजन का ।
निष्कर्ष यह है कि समस्या और समाधान, अशान्ति और दुःख तथा शान्ति और सुख, तीव्र कर्मबन्धन और कर्मों से सर्वथा मुक्ति एवं ध्वंस और निर्माण दोनों का स्रोत शक्ति है। अगर आत्म-शक्ति साधक अपनी शक्तियों का विपरीत दिशा ( आम्रव और बन्ध) में नियोजन करके सही दिशा ( संवर, निर्जरा और मोक्ष) मेंनियोजन करे तो परमात्म-शक्ति-सम्पन्न बन सकता है।
परमात्म-शक्ति आत्मा में से ही प्रकट होगी
कई लोग कहते हैं - कहाँ साधारण आत्मा की शक्ति और कहाँ परमात्मा की शक्ति ? साधारण आत्मा में परमात्मा की शक्ति कैसे प्रकट हो सकती है ? इसका समाधान यह है कि निश्चयदृष्टि से प्रत्येक आत्मा में परमात्मा के समान अनन्त शक्ति विद्यमान है। इस दृष्टि से प्रत्येक आत्मा में परमात्म-शक्ति प्रच्छन्न रूप में पड़ी है। आत्मा में (स्वयं में) परमात्म-शक्ति प्रकट करने का स्वभाव है। इसलिए परमात्म-शक्ति कहें, चाहे शुद्ध आत्मा की शक्ति कहें, दोनों एक समान हैं। शुद्ध आत्मा ही परिपूर्ण परमात्म-शक्ति से भरा है। अतएव परमात्म-शक्ति कहीं बाहर से, पर - पदार्थों से प्राप्त नहीं होगी, न ही वह किसी देव-देवी, शक्ति, भगवान या अवतार से माँगने से प्राप्त हो सकती है । वह शक्ति आत्मा में ही है, जब भी प्राप्त होगी या प्रकट होगी, आत्मा में से ही प्राप्त या प्रकट होगी। जैसे- पिप्पल को चौंसठ प्रहर तक घिसने से उसमें से जो तीखापन प्रकट होता है, वह खरल में से या किसी बाहरी पदार्थ में से प्राप्त नहीं होता, वह प्रकट होता है - पिप्पल में से ही । पिप्पल में ही चौंसठ प्रहरी तीखेपन की शक्ति अव्यक्त रूप से विद्यमान थी, वह चौंसठ प्रहर तक घिसने से प्राप्त होती है । पिप्पल में निहित चौंसठ प्रहरी तीखेपन की शक्ति न तो तिरेसठ पहर तक घिसे हुए पिप्पल से प्रकट होती है, न ही खरल को घिसने से और न ही चूहे की मींगणी को घिसने से प्रकट होती है, क्योंकि उनमें वैसा स्वभाव ही नहीं है। इसी प्रकार आत्मा का ही परिपूर्ण परमात्म-शक्ति प्रकट करने का स्वभाव है। किन्तु वर्तमान में जो छद्मस्थ आत्मा है, उसमें अभी व्यवहारनय की दृष्टि से अपूर्ण परमात्म-शक्ति है, उसमें से भी पूर्ण परमात्म-शक्ति प्रकट नहीं होगी। न ही शरीरादि को घिसने से परमात्म-शक्ति प्रगट होगी: क्योंकि उनका शरीरादि का वैसा स्वभाव ही नहीं है। जब भी परमात्म-शक्ति प्रकट होगी, आत्मा में निहित ज्ञानादि शक्तियों को जाग्रत करने की साधना से ही होगी। आत्मा
१. देखें - आवश्यक कथा में प्रसन्नचन्द्र राजर्षि का जीवन-वृत्त
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