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* मोक्ष की अवश्यम्भाविता का मूल : केवलज्ञान : क्या और कैसे-कैसे? * २६१ *
केवली होने वाले सोच्चा साधक को अवधिज्ञान की प्राप्ति का क्रम किन्तु सोच्चा केवली को विभंगज्ञान नहीं होता, उसे सीधा अवधिज्ञान होता है तथा उसकी प्रक्रिया में भी असोच्चा केवली से सोच्चा केवली में अन्तर है। वह प्रक्रिया इस प्रकार है-(केवली आदि में से किसी से धर्मवचन सुनकर सम्यग्दर्शनादि प्राप्त जीव को) निरन्तर तेले-तेले (अट्ठम-अट्ठम) के तपःकर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए प्रकृतिभद्रता आदि (पूर्वोक्त) गुणों से सम्पन्न होकर यावत् ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा करते हुए अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है। वह उस उत्पन्न अवधिज्ञान के प्रभाव से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को
और उत्कष्ट अलोक में भी लोक प्रमाण असंख्य खण्डों को जानता और देखता है। फिर वह (असोच्चा केवली की तरह) शुद्ध सम्यग्दर्शन, शुद्ध चारित्र, संयम, संवर, साधुवेश आदि से लेकर यावत् केवलज्ञान तक प्राप्त कर लेता है।'
केवली होने वाले सोच्चा अवधिज्ञानी में लेश्या, योग,
- उपयोग, संहनन, वेद, कषायादि की प्ररूपणा सोच्चा कवेली होने वाले तथारूप अवधिज्ञानी कृष्णादि छहों लेश्याओं में होता है। उसमें तीन या चार ज्ञान तक होते हैं। तीन ज्ञान हों तो आमिनिबोधिक, श्रुत और अवधिज्ञान होता है, चार ज्ञान हों तो मनःपर्यवज्ञान अधिक होता है। सोच्चा केवली में योग, उपयोग, संहनन, संस्थान, ऊँचाई और आयुष्य के विषय में असोच्चा केवली के समान समझना चाहिए। सोच्चा अवधिज्ञानी सवेदी भी होता है, अवेदी भी। यदि सवेदी होता है तो स्त्रीवेदी भी होता है, पुरुषवेदी भी होता है और पुरुष-नपुंसक (कृत्रिम नपुंसक) वेदी भी होता है। यदि अवेदी होता है तो उपशान्तवेदी नहीं होता, क्षीणवेदी होता है। वह सकषायी भी होता है, अकषायी भी। यदि वह अकषायी होता है, क्षीणकषायी होता है, उपशान्तकषायी नहीं और अगर वह सकषायी होता है तो संज्वलन के या तो चारों क्रोधादि कषाय होते हैं, या संज्वलन का मान, माया और लोभ ये तीन कषाय होते हैं, या संज्वलन के माया और लोभ ये दो कषाय होते हैं अथवा संज्वलन का एक कषाय हो तो एकमात्र लोभकषाय होता है। सोच्चा अवधिज्ञानी के असोच्चा केवली की तरह असंख्यात प्रशस्त अध्यवसाय होते हैं।
सोच्चा अवधिज्ञानी को केवलज्ञान-दर्शन-प्राप्ति तक की प्रक्रिया आगे जिस प्रकार असोच्चा केवली के सम्बन्ध में प्रशस्त अध्यवसाय के प्रभाव से अवधिज्ञान से लेकर केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त होने तक की प्रक्रिया सूत्र २६
१. भगवतीसूत्र, श. ९, उ. ३९, सू. ३३, विवेचन, पृ. ४५२ .२. वही, श. ९, उ. ३१, सू. ३४-३९, विवेचन (आ. प्र. स., ब्यावर), पृ. ४५२-४५४
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