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* ३९८ * कर्मविज्ञान भाग ९ : परिशिष्ट *
___ अपूर्वकरण-मोहकर्म के उपशमन या क्षपण का प्रारम्भ करते हुए अन्तर्मुहूर्त-पर्यन्त प्रतिसमय होने वाले अपूर्व-अपूर्व अध्यवसाय। अपूर्व गुणस्थान में विवक्षित समयवर्ती जीवों को छोड़कर अन्य समयवर्ती जीवों के न पाये जाने वाले भाव। आत्मा के ऐसे परिणाम, जिनके द्वारा जीव राग-द्वेष की दुर्भेद्य ग्रन्थि को तोड़ देता है।
अपूर्वकरण गुणस्थान-आठवाँ गुणस्थान, जिसमें स्थितिघात, रसघात, गुणश्रेणि और स्थितिबन्ध आदि के निवर्तक अपूर्व कार्य होते हैं।
अपोह-जिसके द्वारा संशय के कारणभूत विकल्प को दूर किया जाये, ऐसे ज्ञान-विशेष को अपोह या अपोहा कहते हैं।
अप्काय-अप यानी जल ही जिनका शरीर हो, वे जीव; यथा ओस, बर्फ, शुद्ध जल आदि। इन्हें अप्कायिक भी कहते हैं।
अपुनरागमन-जहाँ से लौटकर जीव का वापस आना नहीं होता। इसे अपुनरागमन तथा अपुनरावृत्ति नामक सिद्धिगति भी कहते हैं।
अपुरस्कार-आत्मगर्व का परित्याग करके आत्म-लघुता = नम्रता प्रगट करना।
अप्रतिपाती (अवधिज्ञान)-जो अवधिज्ञान विजली के प्रकाश के समान विनश्वर या प्रतिपाती (पतन होने वाला) नहीं है, किन्तु केवलज्ञान की प्राप्ति तक स्थिर रहने वाला है तथा जो अलोक के एक प्रदेश को भी देखता है।
अप्रतिघाती (अप्रतिघात) ऋद्धि (लब्धि)-आकाश के समान पर्वत, शिला, दीवार, वृक्ष आदि किसी भी ठोस पदार्थ के भीतर से बिना किसी व्याघात (रुकावट) के निकल जाने की शक्ति (क्षमता) वाली ऋद्धि (लब्धि)। ___ अप्रतिबुद्ध-कर्म और नोकर्म को आत्मा और आत्मा को कर्म-नोकर्म समझने वाला जीव अप्रतिबुद्ध (बहिरात्मा) कहलाता है। अथवा संसार से अविरक्त-अजाग्रत आत्मा अप्रतिबुद्ध होता है।
अप्रशस्त ध्यान-पापानव का कारणभूत आर्त्त-रौद्ररूप ध्यान अप्रशस्त ध्यान है।
अप्रशस्त निदान-मानकषाय से प्रेरित हो कर परभव में उत्तम कुल, जाति एवं रूपादि या प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि-वैभवादि पाने की आकांक्षा से आचार्य, गणधर या तीर्थंकरादि पदों के पाने का निदान (नियाणा = दुःसंकल्प) करना।
अप्रशस्त प्रभावना-मिथ्यात्व, अज्ञान, अन्ध-विश्वास आदि भावों की प्रभावना करना (प्रचार-प्रसार करना)।
अप्रशस्त प्रतिसेवना-बल, वर्ण आदि की प्राप्ति के लिए साधक के द्वारा अप्रासुक आहार भी सेवन करना अप्रशस्त प्रतिसेवना है।
अप्रशस्तभाव-संयोग-क्रोध, मान, माया और लोभ के संयोग से क्रमशः जो क्रोधी, नानी, मायी और लोभी कहलाता है, वह अप्रशस्तभावों के संयोग से जनित माना जाता है।
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