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* पारिभाषिक शब्द-कोष * ३९९ **
अप्रशस्तराग-जिस राग के पीछे तीव्र आसक्ति, लोभ, ममत्व, मोह या स्वार्थ हो, वह। अथवा स्त्री, शासक, चोर या भोजनादि की विकथाओं के कहने-सुनने का कुतूहल होना, व्यर्थ की गप्पें हाँकने का चस्का हो, वह।। __अप्रशस्त वात्सल्य-धर्मानुराग के सिवाय गृहस्थों के प्रति साम्प्रदायिक, कषाय-नोकपायोत्तेजक मोह-मूढ़तावश रागभाव रखना। ____ अप्रशस्त विहायोगति (अशुभ विहायोगति-नामकर्म)-जिस कर्म के उदय से ऊँट, गर्दभ एवं शृगाल आदि प्राणियों के समान अशुभ (वेढव या निन्द्य) चाल (गमन-क्रिया) प्राप्त हो।
अप्रशस्त उपबृंहण-मिथ्यात्व आदि में उद्यत प्राणियों का उत्साह बढ़ाना, बढ़ावा देना अप्रशस्त उपबृंहण या अप्रशस्त उपबृंहा है। ___ अप्रवीचार-कामवेदना के प्रतीकार का नाम प्रवीचार है। उससे रहित ग्रैवेयकादिवासी देवों द्वारा कामवेदना का प्रतीकार न करना अप्रवीचार कहलाता है।
अप्रतिक्रम-पादपोपगमन संथारे में द्रव्य प्रतिक्रमण नहीं होना अप्रतिक्रम है। ___ अपरिकर्म-शरीर को स्नानादि से नहा-धो कर शुद्ध करना, शृंगारित, सुसज्जित करना, चंदनादि से सुगन्धित करना आदि परिकर्म से रहित, अथवा परिकर्म न करना।
अपेक्षावाद-स्याद्वाद व अनेकान्तवाद से मिलता-जुलता आइंस्टीन का अपेक्षावाद है, इसे सापेक्षवाद भी कहते हैं।
अप्रिय वचन-कर्कश, कठोर, निष्ठुर, अरतिकर, भीतिकर, खेदकर, वैर-विरोधशोक-कलहकर तथा छेदन-भेदनकर वचनों को अप्रिय वचन कहते हैं। यह असत्य भाषा का प्रकार है।
अबद्ध श्रुत-द्वादशांगरूप बद्ध श्रुत से भिन्न श्रुत अबद्ध श्रुत है।
अबन्ध (अबन्धक)-(I) राग-द्वेष या कषाय से रहित योगों से होने वाले कर्म (क्रिया या प्रवृत्ति) से स्थितिबन्ध-अनुभागवन्ध नहीं होता। प्रदेशबन्ध-प्रकृतिबन्ध भी नाममात्र का होता है। इन्हें अबन्धक कर्म या शुद्ध कर्म भी कहते हैं। (II) सिद्ध जीव तथा अयोगी जिन भी बन्ध के कारणों से सर्वथा रहित होने से अबन्ध या अबन्धक हैं। वे मोक्ष के कारणों से - युक्त होते हैं।
- अबद्ध नोकर्म-जो शरीर आदि की तरह आत्मा के साथ सदैव, सर्वत्र, सम्पृक्त-संयुक्त नहीं रहते, न ही आत्मा के साथ दूध-पानी की तरह एकमेक हो कर रहते हैं; वे धन, सम्पत्ति, परिवार, मकान आदि अबद्ध नोकर्म हैं। चारों शरीर आत्मा से बँधे हुए होने के कारण, दूध-पानी की तरह परस्पर मिले हुए हैं। इसलिए शरीरादि बद्ध-नोकर्म हैं।
अबाध-निर्वाण (मोक्ष) का एक नाम। 'अनाबाध' भी एक नाम है। दोनों का अर्थ एक ही है-बाधा-पीड़ारहित स्थान।
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