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* पारिभाषिक शब्द-कोष * ४०५ *
अबिचार (ध्यान)-जो ध्यान व्यंजन, अर्थ और योग के परिवर्तन से रहित होता है, वह अविचार या अवीचार नामक ध्यान है।
अविच्युति-मतिज्ञान के अन्तर्गत धारणा का एक प्रकार। अवायज्ञान के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त तक निश्चय किये गये पदार्थ के स्मरण (स्मृति) या उपयोग से च्युत न होने यानी धारणा बनी रहने को अविच्युति कहते हैं। इसे धारणा, वासना या स्मृति भी कहते हैं।
अविपाक निर्जरा-जिस कर्म का उदयकाल अभी प्राप्त नहीं हुआ है, उसे तपश्चरण आदिरूप औपक्रमिक क्रिया-विशेष के सामर्थ्य से बलपूर्वक उदयावलिका में प्रविष्ट कराके उसके विपाक (फल) को वेदन करना (भोग लेना) अविपाक निर्जरा है।
अविभाग-प्रतिच्छेद-(I) सयोगी जीव के करणवीर्य गुण को बुद्धि से तव तक छिन्न करते जाना, जब तक कि उसके आगे और कोई विभाग उत्पन्न न हो सके, ऐसे अन्तिम अविभागी अंश का नाम अविभाग-प्रतिच्छेद है। (II) एक परमाणु में जो जघन्य अनुभाग की वृद्धि हो, उसे भी अविभाग-प्रतिच्छेद कहते हैं।
अविरति-हिंसादि पापों से विरत होना विरति है, ऐसी विरति का अभाव अविरति है। अविरति और असंयम अथवा अव्रती ये समानार्थक शब्द हैं। लोभ-परिणाम को भी प्रकारान्तर से अविरति कहा जाता है।
अविरत-सम्यग्दृष्टि-जो इन्द्रिय-विषयों से बिलकुल विरत = (बिलकुल नियमबद्ध या व्रतबद्ध) नहीं है, बस एवं स्थावर जीवों का रक्षण करने में जिसका ध्यान नहीं है। केवल जिन-वचनों पर या देव-गुरु-धर्म पर श्रद्धा रखता है, वह अविरत सम्यग्दृष्टि नामक चतुर्थ गुणस्थानवी जीव है। इसे ही दूसरे शब्दों में असंयत (अविरत) और 'असंयत सम्यग्दृष्टि' कहते हैं।
अव्यक्त दोष-मेरा अपराध भी इसके अपराध के सदृश ही है। इसे जो प्रायश्चित्त दिया गया है, वही मेरे लिए है; इस प्रकार अपने अपराध को प्रगट न करना, यह आलोचना का अव्यक्त नामक दोष है।
. अव्यक्त-(1) अगीतार्थ, शास्त्र-रहस्यानभिज्ञ साधु, (II) अथवा गुरु या आचार्य का प्रत्यंनीक, वाद-विवाद करने वाला साधु, (III) अव्यक्त मत या उसका प्रवर्तक जैनाभास साधु, (IV) अस्पष्ट, (V) छोटी उम्र का बालक। अव्यक्त मिथ्यात्व-मोहरूप मिथ्यात्व। (VI) सांख्यमतप्रसिद्ध प्रकृति को भी अव्यक्त कहते हैं।
अव्याबाध-(1) जहाँ किसी प्रकार की बाधा-पीड़ा न हो उस मुक्ति-स्थान का नाम अव्याबाध है। (II) जिनके काम-विकारादि बाधाएँ नहीं होतीं, ऐसे लोकान्तिक देवों को भी अव्याबाध कहा जाता है।
'अव्याबाध-सुख-कर्मफल के सम्बन्ध से रहित, अनुपम, अपरिमित (अनन्त); अविनश्वर तथा जन्म-जरा-मृत्यु-रोग-भय आदि से रहित संसार से अतीत, ऐकान्तिक, आत्यन्तिक, वाधारहित मुक्ति-सुख अव्यावाध-सुख है।
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