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* पारिभाषिक शब्द कोष * ५१३ *
वाचनार्ह-गुरुभक्त, क्षमावान, कृतकृत्य, नीरोग, विशुद्ध बुद्धि के ८ गुणों से युक्त, विनम्र, शास्त्रानुरागी, सर्व प्रकार के आक्षेपों से रहित, निद्रा और आलस्य का विजेता, विषयेच्छा से रहित और मात्सर्यभाव से दूर रहने वाला हो, वह साधक सिद्धान्त की वाचना लेने के योग्य होता है।
वात्सल्य- (I) जो मुक्ति के साधना के प्रतिभूत रत्नत्रय में अनुराग रखता है, वह वात्सल्यगुणयुक्त सम्यग्दृष्टि है । (II) साधर्मिजन, विशेषतः अतिथि, ग्लान, गुरु, तपस्वी आदि के प्रति अनुराग रखता है, जिनशासन पर अनुराग रखता है; वह सम्यग्दर्शन के वात्सल्य गुण का परिपालक है।
वामन - संस्थान - जो नामकर्म समस्त अंगों और उपांगों की हस्व अवस्था - विशेष (बौनेपन का कारण हो, उसे वामन संस्थान कहते हैं।
वायुकायिक जीव - जिस जीव ने वायु को शरीररूप में ग्रहण कर लिया हो, उसे वायुकायिक कहते हैं।
वासना
- अविच्युति से जो संस्कार स्थापित होता है, उसे वासना कहते हैं। धारणा के तीन क्रम हैं - अविच्युति, वासना और स्मृति; इन तीनों में से वासना उसका दूसरा भेद है। विकथा - जो कथा ( वार्त्तालाप, बातचीत या सम्भाषण ) संयम की विघातक हो, कामोत्तेजक, युद्धोत्तेजक, सर्गभावोत्तेजक एवं मार्गविरुद्ध पापवर्द्धक हो, वह विकथा है।
विकल्प- मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ, इत्यादि हर्ष-विषादरूप परिणाम का होना विकल्प है। विक्रिया- वैक्रियशक्ति-अणिमा, महिमा आदि अष्टविध सिद्धियों के योग से एक या अनेक, छोटा या बड़ा, नानारूप धारण कर लेना विक्रिया या वैक्रिय शक्ति है। देवों और नारकों को तो जन्म से वैक्रियशरीर मिलता है। देव वैक्रियशरीर के आश्रय से नानारूप बना सकते हैं।
विक्षेपणी कथा -पहले मिथ्यावाद का कथन करके फिर स्व- सम्यग्वाद का कथन करना अथवा पहले स्व-सम्यग्वाद का प्रतिपादन करके फिर मिथ्यावाद का कथन करना अर्थात् स्व-समय-पर-समय दोनों का कथन करना विक्षेपणी कथा है। कुमार्ग से सन्मार्ग में डालना विक्षेपणी का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है।
विचय- विवेक, विचय और विचारणा, ये तीनों समानार्थक हैं।
वह
विज्ञान - (I) मोह, सन्देह, विपर्यास तथा अनध्यवसाय से रहित जो ज्ञान होता है, विज्ञान कहलाता है। (II) जिस ज्ञान में स्व-पर-विषयक विविध प्रकार का प्रतिभास होता है, उसका नाम विज्ञान है।
विद्या - (I) जिस मंत्र की अधिष्ठात्री स्त्री- देवता हुआ करती है अथवा जो जप आदि अनुष्ठान द्वारा सिद्ध की जाती है, उसे विद्या कहते हैं। (II) अथवा जिसको जान कर मानव अपने हित को समझता है और अहित से दूर रहता है, उसे विद्या कहते हैं ।
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