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* पारिभाषिक शब्द-कोष * ४४१ *
गण-(I)- जो साधु स्थविर या श्रुत स्थविर होते हैं, उनका समूह। (II) विविध साधु-समुदाय के कुलों का समूह गण कहलाता है। (III) मल्ल, लिच्छवी आदि जातियों का समूह भी गण कहलाता है। भगवान महावीर के युग में ९ मल्लइ, ९ लिच्छवी, इन १८ देश के राजाओं का गणराज्य था। वर्तमान युग में सम्प्रदाय, पंथ या मार्ग शब्द प्रचलित हैं। ___ गणधर-(I) जो गण का परिरक्षण करता है। (II) गणों को धारण करता है-कराता है; उन्हें दुर्गति मार्ग से या मिथ्या श्रद्धान आदि से हटा कर मोक्षमार्ग में तथा सम्यग्दर्शनादि में स्थापित करता है वह गणधर है। (III) अनुत्तर ज्ञान-दर्शनादि धर्मगण को धारण करता है, वह भी गणधर है।
गति-(I) गति-नामकर्म के उदय से जो चेष्टा = देशान्तर-गमनरूप क्रिया निर्मित होती है, वह गति है। (II) गति-नामकर्म के उदय से आत्मा को एक पर्याय को छोड़ कर दूसरी पर्याय प्राप्त होती है, उसे गति कहते हैं। वे गतियाँ चार हैं-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति। .
गति-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव अन्य भव को जाता है या प्राप्त करता है अथवा नरकादि गति के लिए गमन होता है, वह। • गन्ध-नामकर्म-जिस नामकर्म के उदय से शरीर में सुगन्ध या दुर्गन्ध उत्पन्न हो, उसे गन्ध-नामकर्म कहते हैं। . __ गमिक श्रुत-श्रुतज्ञान का एकभेद। अर्थ की भिन्नता होते हुए भी अक्षरों की समानता रखने वाले पाठों से युक्त शास्त्र। .
गरिमा-(I) गुरुता-महत्ता। (II) जिस ऋद्धि (सिद्धि) के प्रभाव से वज्र से भी गुरुतर शरीर बनाया जा सके उसे गरिमा नाम की ऋद्धि या सिद्धि कहते हैं।
गर्भज-गर्भजन्मा-गर्भ से उत्पन्न होने वाले जीव। . गर्हा-(I) हिंसा, कठोरता तथा निर्दयता एवं पैशुन्ययुक्त वचन को गर्हित या गर्हायुक्त कहते हैं, जो सत्य होने पर भी गर्हित होते हैं। (II) गुरु, आचार्य या बड़ों के समक्ष जो आत्म-निन्दा या आत्म-दोष प्रकट किया जाय, उसे गर्दा कहते हैं। (III) प्रायश्चित्त नामक आभ्यन्तर तप का एक प्रकार। इसे गर्हणा भी कहते हैं। __गवालीक-गाय या गोवंश से सम्बन्धित असत्य बोलने अथवा उपलक्षण से गाय आदि सभी चतुष्पदों के विषय में असत्य बोलना गवालीक नामक श्रावक के द्वितीय व्रत का अतिचार है।
गवेषणा-(I) आहारादि एषणीय हैं या अनैषणीय? इस विषय में दाता से पूछताछ करना गवेषणा है। (II) निर्दोष आहार आदि के ग्रहण का एक उपाय। (III) ईहा मतिज्ञान का पर्यायवाचक शब्द भी है।
गारव-ऋद्धि, रस और सात (सुख-सामग्री) में आसक्ति रखना।
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