Book Title: Karm Vignan Part 09
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 533
________________ * विषय - सूची: नौवाँ भाग * ३७९ * जगाने के लिए है - २१६, पुरुषार्थ से घबराने वाले लोग आत्म-शक्तियों को कैसे जगा सकते हैं? एक • चिन्तन २१७, पहले विपरीत दिशा में नियोजित शक्तियों को अध्यात्म दिशा में कैसे नियोजित कर सकते हैं: एक समाधान २१७, विपरीत दिशा में स्फुरायमाण वीर्य (शक्ति) अध्यात्म दिशा में स्फुरायमाण हो तो बेड़ा पार हो सकता है २१९, परमात्म-शक्ति आत्मा में से ही प्रकट होगी २२०, आत्म-शक्तियों को जाग्रत करने में मुख्य पाँच आयामों का विचार करना आवश्यक २२१, आत्म-शक्ति जाग्रत होने के पश्चात् मार्गदर्शन, शुद्ध उपादान न रहे तो सब तरह से बर्बादी २२३, अर्जित महामूल्य आत्म-शक्ति को नष्ट-भ्रष्ट करके आसुरी शक्ति में बदल दी विश्वभूति ने २२३, पौद्गलित वीर्य (शक्ति) का मूल स्रोत आत्मा है २२६, बालवीर्य और पण्डितवीर्य की परिभाषाएँ २२६, आध्यात्मिक वीर्य (शक्ति) के मुख्य दस प्रकार २२७, 'सूत्रकृतांग' में बालवीर्य (सकर्मवीर्य) की पहचान के कुछ संकेत २२८, प्रमादी अज्ञजन बालवीर्य ( अज्ञानयुक्त शक्ति) का प्रयोग कैसे करते हैं ? २२९, अकर्मवीर्य = पण्डितवीर्य की साधना के उनतीस प्रेरणासूत्र २२९, मनोबलप्राण द्वारा आत्म-शक्ति (पण्डितवीर्य) का विकास और जागरण कैसे हो ? २३०, वचनबलप्राण द्वारा पण्डितवीर्य कैसे अभिव्यक्त और जाग्रत हो ? २३१, कायबलप्राण द्वारा पण्डितवीर्य का प्रकटीकरण कैसे हो ? २३२, पंचेन्द्रियबलप्राण, श्वासोच्छवासबलप्राण और आयुष्यबलप्राण द्वारा आत्म-शक्ति का विकास कैसे हो ? २३२, श्वासोच्छ्वासबलप्राण द्वारा आत्म-शक्ति (पण्डितवीर्य) का विकास और जागरण कैसे हो ? २३३, आयुष्यबलप्राण द्वारा आत्म-शक्ति का विकास और जागरण कैसे हो ? २३४, अशुद्ध और शुद्ध पराक्रम (वीर्य) से बालवीर्य और पण्डितवीर्य की पहचान २३४, आत्मिक शक्तियों के क्रमशः पूर्ण विकास का उपाय २३५-२३६ । (८) मोक्ष की अवश्यम्भाविता का मूल : केवलज्ञान : क्या और कैसे-कैसे ? पृष्ठ २३७ से २७४ तक मोक्ष-प्राप्ति का मूल क्या, क्यों, कैसे और किसको ? २३७, केवलज्ञानी होने पर ही निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त हो सकता है २३७. छद्मस्थ और केवली में अन्तर २३८, छद्मस्थ और केवली के आचरण में सात बातों का अन्तर २३९, केवली में दस अनुत्तररूप विशेषताएँ २४०, ये पाँच कारण केवलज्ञान- केवलदर्शन उत्पन्न होने में बाधक नहीं २४०, केवली पाँच कारणों से परीपहों- उपसर्गों को समभाव से सहते हैं २४१, केवलज्ञानी के अन्य कुछ लक्षण २४२, केवली के परिचय के लिए अन्य विशेषताएँ भी २४२, प्रथमसमयवर्ती केवली के चार घातिकर्म क्षीण हो जाते हैं, चार अघातिकर्म शेष रहते . हैं २४२, केवली कदापि यक्षाविष्ट नहीं होते, न ही सावध या मिश्र भाषा बोलते हैं २४३, तीर्थंकर की अपेक्षा से परम अवधिज्ञानी और मनःपर्यायज्ञानी भी केवली, जिन, अर्हन्त कहे जाते हैं २४३, सामान्य (भवस्थ) केवली और सिद्ध केवली में मूलभूत अन्तर २४४, सयोगी केवली योगों का पूर्ण निरोध किये बिना अयोगी केवली नहीं बन सकते २४६, सिद्ध केवली की विशेषताएँ - अर्हताएँ २४६, अन्तकृत् केवली और सामान्य केवली में अन्तर २४७, अन्तकृत केवली चरमशरीरी भी कहलाता है २४८, चरमशरीरी को ये सत्तरह बातें प्राप्त हो जाती हैं २४८, भोगों का त्रिविध योगों से परित्याग करने पर ही ये उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं २५0, तीर्थंकर केवली और प्रत्येकबुद्ध केवली आदि में अन्तर २५०, तीर्थंकर केवली की ये . विशेषताएँ सामान्य केवली में नहीं होतीं २५२, भगवान महावीर के शासन में तीर्थंकर नामगोत्र बाँधने वाले नौ व्यक्ति २५३, निर्ग्रन्थ और स्नातक (निर्ग्रन्थ) केवली २५३, गृहस्थ केवली भी सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए हैं, होते हैं २५४, अन्यलिंग केवली की प्ररूपणा २५५, असोच्चा केवली : स्वरूप तथा तत्सम्बन्धित ग्यारह प्रश्न और समाधान २५५, असोच्चा केवली को निभंगज्ञान से अवधिज्ञान और उससे केवलज्ञान प्राप्त होने की प्रक्रिया २५७, असोच्चा केवली द्वारा उपदेश, प्रव्रज्या- प्रदान, सर्वकर्ममुक्ति तथा उनके निवास तथा संख्या के विषय में २५९, सोच्चा केवली : स्वरूप, केवलज्ञान-प्राप्ति : कैसे-कैसे और कब ? २६०, केवली होने वाले सोच्चा साधक को अवधिज्ञान की प्राप्ति का क्रम २६१, केवली होने वाले सोच्चा अवधिज्ञानी में लेश्या, योग, उपयोग, संहनन, वेद, कषायादि की प्ररूपणा २६१, सोच्चा अवधिज्ञान को केवलज्ञान-दर्शन-प्राप्ति तक की प्रक्रिया २६१, सोच्चा केवली का अवस्थान तथा एक सामायिक संख्या २६२, केवलज्ञान : स्वरूप और उसकी प्राप्ति के मुख्य और अवान्तर कारण २६२. भरतचक्री का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704