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* पारिभाषिक शब्द-कोष * ३८५ *
अतिभार-प्रथम अणुव्रत का अतिचार। यह दोष तब लगता है, जब द्विपद, चतुष्पद जितना बोझ उठा सके, उससे अधिक बोझ उन पर लाद दे।
अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष-इन्द्रिय-व्यापार से निरपेक्ष, देश-काल आदि के व्यवधान से रहित अभ्रान्त, निर्मल, यथार्थ, अतिशयस्वरूप ज्ञान। समस्त लोक में उत्कृष्ट स्व और (बाह्य) पर दोनों को विषय करने वाला ज्ञान।
अतीन्द्रिय-सुख-इन्द्रिय और मन की अपेक्षा न रख कर आत्मा की अपेक्षा प्राप्त होने वाला निर्बाध-सुख, अथवा आत्मिक-सुख।
अतीर्थसिद्ध-तीर्थ के न होते हुए भी तीर्थान्तर से सिद्ध होने वाले मानव। अतीर्थकरसिद्ध-सामान्यकेवली हो कर सिद्ध होने वाले जीव।
अतीर्थसिद्ध केवलज्ञान-तीर्थ की स्थापना न होने पर या उसके विच्छेद हो जाने पर सिद्ध होने से पूर्व हुआ केवलंज्ञान।
अत्यन्ताभाव-जिसका सद्भाव त्रिकाल में भी सम्भव न हो, ऐसा अभाव। जैसे-खर-सींग।
अतिव्याप्ति दोष-लक्षण का एक दोष; जो लक्ष्य में रहता हुआ अलक्ष्य में भी रहता है। ____ अदत्तादान-दूसरों के द्वारा बिना अनुमति, सम्मति या दिये हुए किसी पदार्थ को अपने अधिकार में लेना, उसका मालिक बन जाना। उसे अदत्तग्रहण, चोरी, अपहरण आदि भी कहते हैं।
अदर्शन-परीषह-विजय-चिरकाल तक व्रत, तप आदि का आचरण करने पर भी ज्ञानातिशय या लब्धि-विशेष प्राप्त न होने पर झुंझला कर 'व्रतों का धारण करना व्यर्थ है' ऐसा विचार न करके उपादान का विचार कर सम्यग्दर्शन को शुद्ध बनाये रखना। ___ अद्धाकाल-चन्द्र, सूर्य आदि की गति (क्रिया) से परिलक्षित हो कर ढाई द्वीप में समयादि के रूप में प्रवर्तमान काल है, वह। - अद्धापल्य-उद्धारपल्य के प्रत्येक रोमखण्ड को प्रति सौ वर्ष काल में निकाला जाये, वह जितने वर्षों में पूरा ठसाठस भर जाये, उतने सौ वर्षों से गुणित करने पर जितना काल हो, वह। - अद्धापल्योपम काल-अद्धापल्य में से एक-एक समय में एक-एक रोमखण्ड को निकालते-निकालते पूरा निकालने में जितना समय लगे, उतना समय लगने वाला काल।
अद्धासागरोपम काल-दस कोटाकोटि अद्धापल्योपम प्रमाण काल का एक सागरोपम काल होता है।
अद्वेष-तत्त्व-सम्बन्धी अरुचि, घृणा या अप्रीति न होना, या उसे दूर करना।
अदृष्ट-भाग्य, प्रारब्धकर्म, वेदाती या मीमांसक जिसे अपूर्व कहते हैं। नहीं देखा हुआ। दैवी भय।.
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