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* ३२४ * कर्मविज्ञान : परिशिष्ट *
मन:पर्या
प्रकार का मतिज्ञान बारह-बारह प्रकार से २५२, बहु-बहुविध आदि के अर्थ और विश्लेषण २५३, मतिज्ञान के ३३६ भेदों का विश्लेषण २५४, मतिज्ञान के ३४०-३४१ भेदों का विवरण २५४, चारों बुद्धियों का स्वरूप २५४, मतिज्ञानावरणीय कर्म का परिष्कृत एवं सामान्य स्वरूप २५५, मतिज्ञानावरणीय कर्मबन्ध के कारण २५५, मतिज्ञान के पर्यायवाची शब्द तथा मतिज्ञानावरणीय का प्रभाव २५५, मतिज्ञान : सम्यक् और मिथ्या, बन्धकारण समान २५६, श्रुतज्ञान और श्रुतज्ञानावरणीय : स्वरूप और लक्षण २५६, मतिज्ञान से श्रुतज्ञान की विशेषता २५७, श्रुतज्ञान के बीस भेद : स्वरूप और निमित्त २५८, मतिश्रुत दोनों सहचारी ज्ञान हैं २५९, श्रुतज्ञानावरणीय कर्म का परिष्कृत लक्षण और कार्य २५९, अवधिज्ञान, अवधिज्ञानावरणीय : स्वरूप और प्रकार २६०, अवधिज्ञान के मूल दो भेद : स्वरूप और अधिकारी २६०, गुणप्रत्यय अवधिज्ञान के छह प्रकार २६१. द्रव्यादि की अपेक्षा अवधिज्ञान का निरूपण २६१, प्रतिपाती अवधिज्ञान : एक दृष्टान्त २६२, अवधिज्ञानावरणीय कर्मबन्ध : स्वरूप और कारण २६२, मनःपर्यायज्ञान, मनःपर्याय-ज्ञानावरण : स्वरूप और कार्य २६३, मनःपर्यायज्ञान और अवधिज्ञान में क्या अन्तर है? २६३, द्रव्यादि की अपेक्षा अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान में अन्तर २६४, मनःपर्यायज्ञान के लिए नौ वातें अनिवार्य २६५, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से मनःपर्यायज्ञान का विषय २६५. मनःपर्यायज्ञान के दो भेद : ऋजमति और विपुलमति २६५, द्रव्यादि की अपेक्षा से दोनों का विश्लेषण २६६, मनोविज्ञान, मनोविज्ञानी तथा
नी में महान् अन्तर २६७, केवलज्ञान तथा केवलज्ञानावरणीय कर्म : स्वरूप, कार्य और स्वामी २६८, केवलज्ञानी भगवान के दस अनुत्तर २६९, केवलज्ञान सर्वोत्तम लब्धि है २६९, केवली द्वारा केवली समुद्घात क्यों और उसकी प्रक्रिया कैसी? २७०, केवलज्ञान की उपस्थिति में अन्य ज्ञानों का सदभाव या असद्भाव? २७१, एक साथ, एक आत्मा में कितने ज्ञान और कौन-से सम्भव २७१, ज्ञानावरणीय कर्म के पाँच ही भेद क्यों? २७२. ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध के विशिष्ट कारण २७२, बद्ध ज्ञानावरणीय कर्म का अनुभाव (फलभोग) २७६, बद्ध ज्ञानावरणीय कर्म का अनुभाव : स्वतः या परतः? २७६, ज्ञानावरणीय कर्म की उत्तर-प्रकृतियाँ सर्वघाती भी और देशघाती भी २७७-२७८। (१७) उत्तर-प्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-२
पृष्ठ २७९ से २९२ तक __दर्शनावरणीय कर्म : उत्तर-प्रकृतियाँ : स्वरूप और बन्ध के कारण २७९, ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म में अन्तर २७९, दर्शन शब्द का पारिभाषिक अर्थ. दर्शनावरणीय कर्म-स्वरूप २८०. दर्शनावरणीय कर्म का समस्त कथन प्रायः ज्ञानावरणीय कर्म के तुल्य २८१, दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर-प्रकृतियाँ और उनका स्वरूप २८१, मनःपर्याय-दर्शनावरण कर्म क्यों नहीं? २८३, दर्शन के आवरणरूप निद्रा के पाँच प्रकार २८३, निद्रादि दर्शनावरणीय-पंचक के दो-दो अर्थ सम्भव २८५, दर्शनावरणीय कर्मबन्ध के प्रमुख कारण २८६, दर्शनावरणीय कर्मफलानुभाव स्वतः या परतः? २८७, वेदनीय कर्म : उत्तर-प्रकृतियाँ, स्वरूप और बन्धकारण २८८, साता-असातावेदनीय का फलानुभाव कैसे-कैसे? २८९, साता-असातावेदनीय कर्मों का फलभोग स्वतः भी, परतः भी २९१, सुख और दुःख स्वकृत कर्मों का ही फल २९२। (१८) उत्तर-प्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वभाव और कारण-३
पृष्ठ २९३ से ३३४ तक ___ मोहनीय कर्म की उत्तर-प्रकृतियाँ : स्वरूप, बन्धकारण और फलभोग २९३, मोहकर्म के आगे बड़े-बड़े पराजित हो गये २९३, मोहनीय कर्म सब कर्मों से प्रबल क्यों है ? २९३, मोहनीय कर्म क्या करता है ? २९४, मोहनीय कर्म के मुख्य दो भेद २९५, दर्शनमोहनीय कर्म : स्वरूप और स्वभाव २९५, दर्शनमोहनीय कर्म का स्वरूप और कार्य २९५, दर्शनमोहनीय का प्रभाव : अनेक रूपों में २९६. सम्यग्दर्शन के बदले दर्शनमोहनीय के शिकार २९७, बहिर्मुखी व्यक्ति दर्शनमोहनीय के प्रभाव में २९७, दर्शनमोहनीय के तीन भेद : कैसे और क्यों ? २९८, इन तीन प्रकारों में हीनाधिकता का प्रमाण ३00, इन तीनों में सर्वघातित्व-देशघातित्व का स्पष्टीकरण ३00, मिथ्यात्व मोहनीय : स्वभाव और कार्य ३0१, मिथ्यात्व : स्वरूप और दस प्रकार ३०२, मिथ्यात्व के पाँच भेद ३०४, मिथ्यात्व से ग्रस्त जीव का मिथ्या, असफल जीवन ३०५, मिश्रमोहनीय कर्म : स्वरूप और कार्य ३०५, सम्यक्त्वमोहनीय कर्म : स्वरूप और कार्य ३०७, कर्मग्रन्थोक्त तत्त्वश्रद्धान् रूप सम्यक्त्वमोहनीय ३०८, नौ तत्त्वों के नाम और स्वरूप तथा प्रकार
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