Book Title: Karm Vignan Part 09
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 525
________________ * विषय-सूची : आठवाँ भाग * ३७१ * दुःखदायक या भ्रयोत्पादक नहीं होती ३६५, शरीर-कर्म-कारावास से मुक्त होने में डर किसका? : एक चिन्तन ३६५, दो प्रकार के मरण : सकाममरण और अकाममरण ३६६, बालमरण : अकाममरण या असमाधिमरण ३६६, बालमरण से मरने वालों का निकृष्ट जीवन और चिन्तन ३६७, सकाममरण का लक्षण और फल ३६७, सकाममरण का उत्तम फल : मोक्ष या उच्च देवलोक ३६८, मुख्यतया दो प्रकार के मरण : बालमरण और पण्डितमरण : स्वरूप और प्रकार ३६८, एकान्त बाल, एकान्त पण्डित और बाल-पण्डित का आयुष्यबन्ध ३६९, ज्ञानी साधक की सकाममरणीय दशा ३७१, अज्ञानी जीव की अकाममरणीय दशा ३७१, सकाममरणयुक्त पण्डितमरण का स्वरूप, महत्त्व और आराधकत्व ३७१, पण्डितमरण का सच्चा आराधक ३७२, सभी मरणों के मुख्य दो प्रकार : समाधिमरण और असमाधिमरण ३७२, समाधिमरण की सफलता के लिए तीस भावनाएँ-अनुप्रेक्षाएँ ३७२, मनुष्य-भव और अच्छे संयोग प्राप्त होने पर भी लापरवाही क्यों? ३७७, मृत्यु के समय समाधि रखने की प्रेरणा ३७८, मृत्यु के समय समाधि कैसे रहे? ३७८, समाधिमरण-साधक का चिन्तन और समाधिभाव की प्रेरणा ३७९, समाधिमरण के लिए मृत्यु-महोत्सव-भावना ३८०, समाधिमरण में सबसे बड़ी तीन बाधाएँ ३८२, समाधिमरण में असफलता का कारण : देहादि के प्रति मूर्छा ३८३, कुसंस्कार : समाधिमरण की साधना में बाधक ३८३, अजागृति : समाधिमरण की सबसे बड़ी बाधा ३८४, समाधिमरण-साधक मृत्यु के प्रति सदा आशंकित, जाग्रत और सतर्क रहता है ३८४, मृत्यु की बेला में कठोर परीक्षा में कौन सफल, कौन असफल ? ३८५, समाधिमरण की प्रबल कसौटी : मृत्यु ३८५, आराधना-विराधना की प्रबल कसौटी भी मृत्यु है ३८६, मृत्यु के प्रकार : निमित्त और समाधि-असमाधिपूर्वक मरण ३८७, व्याधि के निमित्त से मरण में समाधिभाव कैसे और कैसे नहीं? ३८७, आकस्मिक मरण क्या, कैसे-कैसे और समाधिभाव कैसे? ३८८, उपसर्ग से मृत्यु होने में निमित्त और समाधिपूर्वक मरण-वरण ३८९, देवकृत उपसर्ग के समय समभाव-समाधिभाव रखना कठिन ३८९. मनुष्यकृत उपसर्ग के समय समाधिभाव रखना कितना कठिन, कितना आसान? ३८९, उपसर्ग के समय निर्भय होकर देहोत्सर्ग करना समाधिमरण है ३९0, मनुष्य द्वारा मनुष्यों-तिर्यञ्च पशुओं पर होने वाले उपसर्गकृत मरण ३९१, तिर्यञ्चकृत उपसर्ग के समय प्रायः असमाधिमरण, क्वचित् समाधिमरण ३९२, समाधिमरण की तैयारी के लिए चिन्तन-बिन्दु ३९२-३९३।। (१५) संलेखना-संथारा : मोक्षयात्रा में प्रबल सहायक पृष्ठ ३९४ से ४२९ तक स्वेच्छा से होने वाले मरण के दो प्रकार : आत्महत्या से और संलेखना-संथारे से ३९५, आत्महत्या से होने वाले मरण : कारण और दःखद फल ३९५. स्वेच्छा से मरण का दसरा प्रकार : संलेखना-संथारा : स्वरूप ३९६, संलेखना और संथारे में अन्तर ३९७, विभिन्न विमोक्षों के रूप में संलेखना-संथारा की साधना और उनका प्रतिफल ३९७, संलेखना के दो प्रकार : काय-संलेखना और कषाय-संलेखना ३९८, विविध संलेखना की विधि और अवधि ३९९, संलेखना-साधक संथारा-ग्रहण से पहले क्या करे? ४00 संलेखना-संथारा की पूर्व तैयारी है भी, नहीं भी ४०१, पूर्व तैयारी के रूप में संलेखना और मारणान्तिकी संलेखना में अन्तर ४०१. संलेखना-संथारा कब करना चाहिए, कब नहीं? ४०२, संलेखना-संथारा में अन्तिम समय की प्रधानता क्यों? ४०३, जिन्दगीभर की हुई आराधना मृत्युकाल में विराधना में परिणत हो सकती है ४०४. जिंदगी में की हुई अनाराधना, मृत्युकाल में आराधना में परिणत हो सकती है ४०५, शरीर-कषाय-संलेखना पहले से ही क्यों? ४०७, संलेखना की भावना भी भव-भ्रमणनाशिनी है ४०८, कभी-कभी तत्काल संथारे का निर्णय करना होता है ४०९, संलेखना-संथारा और आत्महत्या में महान् अन्तर ४१0, ये सब प्राणोत्सर्ग-प्रयोग समाधिमरण नहीं हैं ४११, संलेखना-संथारा स्व-हिंसा नहीं, स्व-पर-दया है ४१२, संलेखना-संथारा मृत्यु को अमरता में बदलने के लिए किया जाता है ४१२, संलेखना-संथाग़ : जीवन की अन्तिम आवश्यक अध्यात्म-साधना ४१४, संलेखना-संथारा बहुत ही भावना और विचार के पश्चात् होता है; आत्महत्या में ऐसा नहीं होता ४१४, संलेखना-संथारा और आत्मघात में आध्यात्मिक और व्यावहारकि दोनों दृष्टियों से अन्तर ४१५. संलेखना-संथारे में पाँच अतिचारों से बचने का निर्देश ४१६, संलेखना-संथारा ग्रहण करने से पूर्व सांसारिक सम्बन्धों से सम्वन्ध-विच्छेद आवश्यक ४१९, भ्रान्तियुक्त सम्बन्ध क्या और किन-किन से? ४१९, इन तीनों सम्बन्धियों से सम्बन्ध छोड़कर जाना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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