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* चतुर्गुणात्मक स्वभाव-स्थितिरूप परमात्मपद-प्राप्ति * १८९ *
को, यथार्थ पथ-दर्शन को ठुकरा देता है या किसी प्रत्यक्षदर्शी की आँखें फोड़ देता है या नेत्र विकल कर देता है अथवा पूर्वाग्रह या रोषवश कह देता है, मैं उसे कतई देखना नहीं चाहता, मैं उसके लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शक ग्रन्थ को देखना भी नहीं चाहता, उससे मिलना नहीं चाहता, सच्चे त्यागी के विषय में कहना कि उसका मुँह देखना पाप है। मैं उसके द्वारा मान्य किसी के सुन्दर नेत्र देखकर उससे ईर्ष्या करना, किसी सुन्दरी के नेत्रों को देखकर कामवासना पैदा होना, किसी गुणी के सिर्फ एक सामान्य दोष को देखकर उसे आत्म-भाव से न देखना, पर-नारी को विकारी दृष्टि से देखना, आँखों से विषयवासनावर्द्धक सिनेमा, टी. वी. आदि अश्लील देखना आदि चक्षुदर्शनावरणीय कर्मबन्ध के कारण हैं, जिसके उदय में आने पर व्यक्ति अंधा, काना या मंददृष्टि हो जाता है। इस प्रकार आँखों का दुरुपयोग करके नेत्रों से दर्शन की शक्ति को खो देता है, फलतः वह व्यक्ति आत्मा, परमात्मा का सामान्य बोध नहीं कर पाता।
अचक्षुदर्शनावरणीय कर्मबन्ध के हेतु और फल अचक्षुदर्शनावरणीय कर्म का बन्ध तब होता है, जब नेत्र के अतिरिक्त नाक, कान, जीभ, स्पर्शनेन्द्रिय तथा मन, बुद्धि, चित्त आदि का दुरुपयोग करता है। किसी दीन, दुःखी, रुग्ण, अपाहिज आदि को देखकर नाक-भौं सिकोड़ना, किसी रुग्ण को उल्टी या दस्तें लग रही हों, उस समय बदबू आने पर नाक बंद करके उससे घृणा करना, सेवा से मुँह मचकोड़ना, कान से अश्लील, गंदी, निंदाजनक, आर्तध्यानकारक बातें सुनना, कान से किसी दीन-दुःखी की, पीड़ित की पुकार सुनकर शक्ति होते हुए भी उसकी सहायता न करना, कान से परमात्मा के गुणगान, स्तुति आदि सुनने में आलस्य, उपेक्षा करना, जीभ से अपशब्द, गाली, निन्दा, मिथ्या दोषारोपण, चुगली, मिथ्या भाषण करना, कामवासनावर्द्धक गायन गाना, जीभ से किसी को वचन देकर विश्वासघात करना, जिह्वा लोलुप बनकर माँस, मछली, अंडे आदि अभक्ष्य चीजों का भक्षण करना, मदिरापान करना, नशीली चीजों का सेवन करना, हाथ-पैर एवं शरीर के सभी अंगोपांगों से दूसरे को मारना, सताना, पीटना, हत्या, दंगा, आगजनी, व्यभिचार, बलात्कार, अश्लील चेष्टाएँ, विदूषक चेष्टाएँ आदि पापकारी कुकर्म करना, मन से आर्तध्यान, रौद्रध्यान करना, दूसरों को पीड़ा पहुँचाने, धोखा देने, विश्वासघात करने, ठगने, जाल में फंसाने आदि के प्लान बनाना, षड़यंत्र रचना, बुद्धि से दूसरों को ठगने, अपहरण करने, बदनाम करने, नीचा दिखाने आदि अधःपतन के विचार करना, असंयम और हिंसादि पापों में अहर्निश वुद्धि और चित्त लगाना, बुद्धि का दुरुपयोग करना, ये और इस प्रकार की इन्द्रिय-नोइन्द्रिय चेष्टाएँ अचक्षुदर्शनावरणीय कर्मबन्ध के कारण हैं, जिनसे उसके फलस्वरूप व्यक्ति बहरा, गूंगा, नकटा, लूला,
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