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* परमात्मभाव का मूलाधार : अनन्त शक्ति की अभिव्यक्ति * २०७ *
ठकुरानी में सर्कस में एक भारी-भरकम पशु को उठाने का करतब देखकर विवाद हो गया। ठाकुर कहने लगे-“इतने भारी पशु को तो कोई दैवी-शक्ति के बल पर ही उठा सकता है।" ठकुरानी का कहना था कि “अभ्यास से सब कुछ साध्य है।" ठाकुर अपनी जिद्द पर अड़े रहे। ठकुरानी ने सिद्ध करके बताने का बीड़ा उठाया
और छह महीने की मुद्दत माँगी। ठकुरानी भैंस की नवजात पाड़ी को पीठ पर उठाकर प्रतिदिन महल की सीढ़ियों पर चढ़ने-उतरने का अभ्यास करने लगी। पाड़ी ज्यों-ज्यों बड़ी होती जाती, त्यों-त्यों उसका वजन भी बढ़ता जाता, फिर भी ठकुरानी प्रतिदिन के अभ्यासवश पाड़ी (अब भैंस) को पीठ पर उठाकर आसानी से महल की सीढ़ियाँ चढ़ती और उतरती। आखिर एक दिन ठाकुर साहब को अपनी आँखों से ठकुरानी द्वारा भारी-भरकम वजन की भैंस को पीट पर उठाकर महल की सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते देखकर ठकुरानी की बात को मानना पड़ा। इसी प्रकार नियमित अभ्यास से आध्यात्मिक शक्तियाँ भी अधिकाधिक बढ़ती हैं, विकसित होती हैं।
बढापे में शक्तियों का ह्रास हो जाता है,
फिर शक्तियों का दोहन व उपयोग व्यर्थ है कई अदूरदर्शी और भौतिक सुखलक्षी लोग ऐसा सोचते हैं कि अभी आत्म-शक्तियों के उपयोग और आत्म-विकास में पराक्रम करने की क्या आवश्यकता है? अभी तो जवानी या बचपन है, खाने-पीने और ऐश-आराम करने के दिन हैं। जब बुढ़ापा आएगा, काम-धाम से निवृत्त हो जाएँगे, तभी आत्मा-परमात्मा की एवं आध्यात्मिक-शक्तियों के विकास एवं उपयोग की बात सोचेंगे। इस भ्रान्ति के शिकार होकर वे बुढ़ापे में आत्म-शक्तियों के हास हो जाने, उनका स्रोत सूख जाने के बाद उनके विकास और उपयोग की बात सोचते हैं। इस प्रकार आत्म-शक्तियों का स्रोत सूख जाने के पश्चात् उनका दोहन या क्रियान्वयन करने का उनका प्रयत्न वैसा ही है, जैसा कि आग से मकान के जलकर भस्म हो 'जाने के बाद कुएँ का खोदना।
शास्त्रज्ञ और विद्वान् भी शक्ति का यथोचित
___ उपयोग करने से कतराते हैं कतिपय व्यक्ति शास्त्रों और ग्रन्थों के द्वारा आत्मा की शक्तियों को जानते हैं। वे उन आत्म-शक्तियों पर बारीकी से विश्लेषण और विवेचन भी कर सकते हैं। मगर जब उन शक्तियों के उपयोग करने तथा यथाशक्ति उन्हें जाग्रत और क्रियान्वित करने की बात आती है, तब वे बगलें झाँकने लगते हैं, कोई न कोई बहाना बनाकर टालमटूल करने लगते हैं अथवा उपयोग करने के तरीकों और उपायों के प्रति अपनी अनभिज्ञता प्रकट करते हैं। दियासलाई में आंग है, यह
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