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* १८८ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
___ (३) मात्सर्य-वस्तुस्वरूप का सामान्य बोध होते हुए भी, यदि मैं इसे बताऊँगा तो यह विद्वान् हो जाएगा, इस प्रकार किसी को सिखाना-पढ़ाना नहीं, अथवा दर्शन और दर्शनी के प्रति ईर्ष्या-डाह करना, जलन रखना मात्सर्य है।
(४) अन्तराय-सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति में विघ्न डालना, दर्शन-प्राप्ति के उपकरण-साधन छिपा देना, किसी के ज्ञानाभ्यास में विघ्न डालना, ज्ञानप्रसार के साधनों का विरोध करना, न होने देना भी अन्तराय दोष है।
(५) आसादन-दूसरे के द्वारा दिये जाते हुए दर्शन के बोध या तत्त्वज्ञान के . शिक्षण को संकेत से रोक देना या कह देना कि इनको बोध देना व्यर्थ है, ये बोध ही नहीं पा सकते, मंदबुद्धि हैं, व्यर्थ समय का बर्बाद मत करो अथवा दर्शन और दर्शनी की अविनय-आशातना करना भी आशातना दोष है या दर्शन या दर्शनी के गुणों को ढकना आसादन है।
(६) उपघात-आगम या जिनेन्द्रोक्त ज्ञान (सामान्य बोधरूप दर्शन) में दोष लगाना, व्यर्थ ही दोष निकालना, अथवा उस ज्ञान (सामान्य बोधरूप दर्शन) को ही अज्ञान (अबोध) मानकर उसे दूषित करना उपघात है। ‘भगवतीसूत्र' में इसके बदले ‘अविसंवादनायोग' नामक कारण है, उसका अर्थ है निरर्थक वाद-विवाद करना, कुयुक्ति और कुतर्क से आगमोक्त शब्द के अर्थ को खण्डन करके मनमाना अर्थ करना भी उपघात या अविसंवादयोग है। __ अब हम समीक्षा करेंगे कि सामान्य आत्मा में भी जब केवलदर्शन (अनन्त दर्शन) की शक्ति है, तब उसकी अभिव्यक्ति क्यों नहीं होती। इसके समाधान के लिए दर्शनावरणीय कर्म के चार भेदों पर पूर्वोक्त बन्ध कारणों के परिप्रेक्ष्य में चिन्तन प्रस्तुत करेंगे। दर्शनावरणीय कर्म जो आत्मा में केवलदर्शन (सामान्य बोध) की अभिव्यक्ति नहीं होने देता, उसके चार प्रकार हैं-चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और केवलदर्शनावरणीय। चक्षुदर्शनावरणीय कर्मबन्ध के हेतु और फल
नेत्र से जो दर्शन (आत्मा का सामान्य बोध तथा परभावों-विभावों का भी सामान्य बोध) होना चाहिए, वह इसलिए नहीं हो पाता कि नेत्र से आत्म-भावों की दृष्टि से बोध करना चाहिए, वहाँ अधिकांश जीव नेत्र से किसी को सामान्य बोध हुआ है, उसमें दोष निकालता है, उससे ईर्ष्याभाव रखता है, नेत्र से किसी ने किसी व्यक्ति को भयंकर चोरी, व्यभिचार, हत्या आदि अपराध करते देख लिया, इस पर अपराधी या दोषी व्यक्ति या तो उसको झुठलाने की, उसकी निन्दा करने की, उसके सत्य वोध में दोष निकालने की या उसे मारने-पीटने या उसकी हत्या करने की कोशिश या साजिश करता है। चक्षुदर्शनी द्वारा दिये जाते हुए सही मार्गदर्शन
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