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* १३० * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
(२) अतीर्थसिद्ध-तीर्थ की स्थापना से पहले अथवा बीच में तीर्थ का विच्छेद होने पर जो सिद्ध-मुक्त होते हैं, वे अतीर्थसिद्ध कहलाते हैं। मरुदेवी माता भगवान ऋषभदेव द्वारा तीर्थ-स्थापना से पहले ही मुक्त हो गई थी। भगवान सुविधिनाथ से लेकर भगवान शान्तिनाथ तक आठ तीर्थंकरों के बीच सात अन्तरों में तीर्थ का विच्छेद हो गया था। अतः इस विच्छेदकाल में मोक्ष जाने वाले भी अतीर्थसिद्ध कहलाते हैं।
(३) तीर्थंकरसिद्ध - जो तीर्थंकरपद प्राप्त करके सिद्ध होते हैं, वे तीर्थंकरसिद्ध कहलाते हैं। जैसे- वर्तमान चौबीसी के भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर् तक सभी तीर्थंकर सिद्ध-मुक्त हो चुके हैं।
(४) अतीर्थंकरसिद्ध-जो सामान्यकेवली होकर या तीर्थंकर की गैर मौजूदगी में अर्हद्दशा प्राप्त करके या केवलज्ञानी होकर सिद्ध होते हैं। जैसे-सुधर्मा स्वामी या जम्बू स्वामी आदि तीर्थंकर भगवान महावीर की गैर मौजूदगी में सिद्ध-मुक्त हुए हैं।
(५) स्वयं बुद्धसिद्ध - गुरु या दूसरे के उपदेश के बिना जातिस्मरण आदि ज्ञान से अपने पूर्व-भवों को जानकर स्वयं प्रतिबुद्ध होकर दीक्षा धारण करके जो सिद्ध-बुद्ध होते हैं। जैसे- नमि राजर्षि |
(६) प्रत्येकबुद्धसिद्ध - जो वृक्ष, वृषभ, मेघ, श्मशान, रोग या वियोग आदि किसी एक वस्तु का निमित्त पाकर, अनित्य आदि भावनाओं से प्रेरित (प्रतिबुद्ध) होकर स्वयं दीक्षित होकर सिद्ध हुए हों। जैसे - करकण्डू राजा बैल को देखकर प्रतिबुद्ध हुए और स्वयं दीक्षा लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए । अनाथी मुनि को अपनी व्याधि को देखकर विरक्ति हुई और वे प्रतिबुद्ध होकर स्वयं दीक्षित होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए।
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स्वयंबुद्ध और प्रत्येकबुद्ध प्राय: एक सरीखे होते हैं, सिर्फ थोड़ी-सी विशेषताएँ दोनों में होती हैं-बोधि, उपधि, श्रुत और लिंग ( बाह्य वेश) की।
स्वयंबुद्ध दो प्रकार के होते हैं - तीर्थंकर और तीर्थंकर-व्यतिरिक्त। यहाँ तीर्थंकर-व्यतिरिक्त स्वयंबुद्ध ही गृहीत हैं। तीर्थंकर स्वयंबुद्ध तीर्थंकरसिद्ध में परिगणित हो जाते हैं। स्वयंबुद्ध वस्त्र - पात्र आदि १२ प्रकार की उपधि (उपकरण) वाले होते हैं, जबकि प्रत्येकबुद्ध जघन्य दो प्रकार की और उत्कृष्ट नौ प्रकार की उपधि रखते हैं। इसी प्रकार श्रुत और लिंग (वेश) में भी तथा एकाकी विचरण और गच्छ्गत विचरण आदि बाह्य अन्तर भी थोड़े-थोड़े-से हैं । परन्तु ये सब बाह्य अन्तर होते हुए भी भी दोनों का आध्यात्मिक उत्कर्ष प्राप्त सिद्धत्व में कोई अन्तर नहीं होता । (७) बुद्धबोधितसिद्ध-आचार्य आदि के बोध से प्रतिबुद्ध हो, दीक्षित होकर जो सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं। जैसे - हरिकेशबल को किन्हीं सुविहित साधु से बोध प्राप्त हुआ और वे दीक्षित होकर साधना करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए।
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